Monday 17 November 2008

चाचा नेहरू के पत्र

चाचा नेहरू एक ऐसे व्यक्तित्व रहे जिनकी आँखों में बच्चों के लिये बेहद प्रेम था तथा उनकी बाँहें बच्चों को गोद में लेने के लिए सदा आतुर रहती थी। बच्चों से उनका प्रेम असीम था। जानते हैं बच्चों! आज़ादी के लिए जब वे जेल गए, तब अपना अधिकतर समय उन्होने पत्र लेखन में बिताया। वैसे तो वे पत्र उन्होने अपनी बेटी इन्दु के नाम लिखे थे किन्तु हर बच्चा उनसे बहुत कुछ सीख सकता है। उनके कुछ उदाहरण आपके लिए प्रस्तुत कर रही हूँ-
प्यारे बच्चों !
तुम लोगों के बीच रहना मैं पसंद करता हूँ। तुमसे बातें करने में और तुम्हारे साथ खेलने में सचमुच मुझे बड़ा मज़ा आता है। थोड़ी देर के लिए मैं यह भूल जाता हूँ कि मैं बेहद बूढ़ा हो चला हूँ और मेरा बचपन मुझसे सैंकड़ो हज़ारों कोस दूर हो गया है ..... हमारा देश एक बहुत बड़ा देश है और हम सब को-मिलकर अपने देश के लिए बहुत कुछ करना है। हममें से हर कोई अगर अपने हिस्से का काम पूरा करता रहेगा तो इन सब कामों का ढेर लगता रहेगा और हमारा मुल्क तरक्की के रास्ते पर तेज़ी से आगे बढ़ेगा।
२ मैं आज तुम्हें पुराने जमाने की सभ्यता की सभ्यता का कुछ हाल बताना चाहता हुँ। लेकिन इससे पहले हमें यह समझ लेना चाहिए कि सभ्यता का क्या अर्थ है। अच्छा करना, सुधारना , जंगली आदतों की जगह अच्छी आदतें पैदा करना। यह सब जानने के लिए तुमको खुद सब कथाओं को पढ़ना चाहिए।
३ अगर तुम मेरे पास होते तो मैं तुमसे उस खूबसूरत दुनिया के बारे में बातें करना पसन्द करता। मैं तुमसे फूलों और पेड़ों , परिन्दों और जानचरों, सितारों और पहाड़ों हिम की नदियों और ऐसी दूसरी अनेक चीजों के बारे में बात करता जो हमारे इर्द-गिर्द हैं। उन्होने ऐसे ही अनेक पत्र और लेख लिखे जो आज भी हम सबके लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। उनमें कुछ अंश तो ऐसे हैं जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता । एक बार उन्होने कहा था- यदि कोई मुझे याद करर तो मैं चाहूँगा कि वह यह कहे कि इस आदमी ने पूरे दिल और दिमाग से हिन्दुस्तान से प्यार किया और बदले में उन्होने भी उसे उतना ही चाहा और बेहद मुहब्बत दी। आपका और मेरा काम आज और कल के भारत को बनाना है। लेकिन उसके बनाने के लिए हमें अपने प्राचीन इतिहास को कुछ समझना है और उसमें जो अच्छी बातें हैं , उनका लाभ उठाना है। उसमें जो बुरी बातें हैं उनसे बचना है। लोकतंत्र का मतलब मैं यह समझता हूँ कि समस्याएँ शान्ति पूर्वक सुलझाई जाएँ। अगर आदमी में दहशत भर जाए तो वह ना ठीक से सोच सकता है, ना काम कर सकता है। खतरा चाहे मौजूद हो या आने वाला हो डर से उसका सामना नहीं किया जा सकता।
शान्ति और सत्य का रास्ता ही मनुष्य का सच्चा रास्ता है।
उन्होने कहा- परिवर्तन जरूरी है, लेकिन उसके साथ परम्परा भी जरूरी है। भविष्य की इमारत वर्तमान और अतीत की बुनियाद पर ही खड़ी होती है। अगर अपने इतिहास को हम भुला देंगें और उसे छोड़ देंगें तो हमारी जड़ें कट जाएँगी और हमारा जीवन रस सूख जाएगा।
उन्होने बच्चों को कहा- बुराई के सामने कभी सिर न झुकाना चाहिए। लेकिन बुराई का सामना डर और गुस्से से और बुरी बातों से नहीं करना चाहिए। बुराई का सामना करते समय हमें दिमाग ठंडा रखना चाहिए।
वे गरीबी और अभाव को समाप्त करना चाहते थे। इसीलिए कहा- जब तक दुनिया के किसी भी हिस्से में गरीबी और अभाव रहेगा, दुनिया में खतरा भी बना रहेगा। धर्म का सम्बंन्ध नैतिक और सदाचार की बातों से है।
हिंसा का रास्ता वे खतरे का रास्ता बताते थे। वे काम को महत्व देते थे। इसीलिए इतने बड़े पद पर होने पर भी दिन में १८ से २० घंटे काम करते थे। वे कहते थे- मैं ऐसे आदमी चाहता हूँ जो काम को धर्म समझ कर करें। जो बुराई के सामने सिर ना झुकाएँ। सच्चाई से लड़ने के लिए तैयार रहें। उन्होने बच्चों को देश सेवा की प्रेरणा देते हुए कहा- भारत की सेवा से अभिप्राय करोड़ों लोगों की सेवा से है। इसका अर्थ है कि गरीबी, अग्यानता और असमानता समाप्त कर दी जाए। हर आँख से आँसू पोंछने का प्रयास किया जाए। परंतु जब तक लोगों की आँखों में आँसू हैं और वे पीड़ित हैं तब तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा।
उन्होने कहा- भारत की जनता आजादी पा चुकी है, किन्तु इसके मीठे फल का स्वाद चखने के लिए उसे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी होंगीं।
बच्चों! नेहरू जी के विषय में जितना भी लिखूँ कम है। बस यह समझ लो कि उनको बच्चों से बहुत आशाएँ थीं और आपको उनके आदर्शों पर चलकर उनका सपना पूरा करना है। ईमानदार, देशभक्त और कर्मठ बनना होगा। भारत की तुम आशाएँ हो। नेहरू जी के समान जीवन में उच्च आदर्श और आत्म विश्वास लेकर आगे बढ़ना है, फिर कोई भी मुश्किल तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगी। जय भारत।