Saturday 7 March 2009

आधुनिक नारी





आधुनि नारी

बाहर से टिप-टाप

भीतर से थकी-हारी

।सभ्य, सुशिक्षित, सुकुमारी

फिर भी उपेक्षा की मारी

।समझती है जीवन में

बहुत कुछ पाया है

नहीं जानती-ये सब

छल है, माया है।

घर और बाहर

दोनों मेंजूझती रहती है।

अपनी वेदना मगर

किसी से नहीं कहती है

।संघर्षों के चक्रव्यूह

जाने कहाँ से चले आते हैं ?

विश्वासों के सम्बल

हर बार टूट जाते हैं

किन्तु उसकी जीवन शक्ति

फिर उसे जिला जाती है

।संघर्षों के चक्रव्यूह से

सुरक्षित आ जाती है ।

नारी का जीवन

कल भी वही था-

आज भी वही है ।

अंतर केवल बाहरी है ।

किन्तुचुनौतियाँ

हमेशा सेउसने स्वीकारी है

।आज भी वह

माँ-बेटी तथा

पत्नी का कर्तव्य निभा रही है ।

बदले में समाज से

क्या पा रही है ?

गिद्ध दृष्टि

आज भी उसेभेदती है ।

वासना आज भी रौंदती है ।

आज भी उसे कुचला जाता है ।

घर, समाज व परिवार मेंउसका

देने का नाता है ।

आज भी आखों में आँसू

और दिल में पीड़ा है ।

आज भी नारी-श्रद्धा और इड़ा है ।

अंतर केवल इतना है

कल वह घर की शोभा थी

आज वह दुनिया को महका रही है ।

किन्तु आधुनिकता के युग में

आज भी ठगी जा रही है ।

आज भी ठगी जा रही है