बाहर से टिप-टाप
भीतर से थकी-हारी
।सभ्य, सुशिक्षित, सुकुमारी
फिर भी उपेक्षा की मारी
।समझती है जीवन में
बहुत कुछ पाया है
नहीं जानती-ये सब
छल है, माया है।
घर और बाहर
दोनों मेंजूझती रहती है।
अपनी वेदना मगर
किसी से नहीं कहती है
।संघर्षों के चक्रव्यूह
जाने कहाँ से चले आते हैं ?
विश्वासों के सम्बल
हर बार टूट जाते हैं
किन्तु उसकी जीवन शक्ति
फिर उसे जिला जाती है
।संघर्षों के चक्रव्यूह से
सुरक्षित आ जाती है ।
नारी का जीवन
कल भी वही था-
आज भी वही है ।
अंतर केवल बाहरी है ।
किन्तुचुनौतियाँ
हमेशा सेउसने स्वीकारी है
।आज भी वह
माँ-बेटी तथा
पत्नी का कर्तव्य निभा रही है ।
बदले में समाज से
क्या पा रही है ?
गिद्ध दृष्टि
आज भी उसेभेदती है ।
वासना आज भी रौंदती है ।
आज भी उसे कुचला जाता है ।
घर, समाज व परिवार मेंउसका
देने का नाता है ।
आज भी आखों में आँसू
और दिल में पीड़ा है ।
आज भी नारी-श्रद्धा और इड़ा है ।
अंतर केवल इतना है
कल वह घर की शोभा थी
आज वह दुनिया को महका रही है ।
किन्तु आधुनिकता के युग में
आज भी ठगी जा रही है ।
आज भी ठगी जा रही है