tag:blogger.com,1999:blog-76327439999513802372024-02-19T04:28:06.524-08:00दिल ने कहा........संसार सारा आदमी की चाल देख हुआ चकित
पर झाँक कर देखो दृगों में, हैं सभी प्यासे थकित।
जब तक बँधी है चेतना, जब तक हृदय दुःख से घना
तब तक ना मानूँगा कभी इस राह को ही मैं सहीशोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-48669319423636289242010-09-04T04:52:00.000-07:002010-09-04T04:54:49.937-07:00शिक्षक दिवसशिक्षक दिवस नज़दीक आरहा है, किन्तु शिक्षकों की दशा देख मन घबरा रहा है। वर्तमान में सर्वाधिक चर्चित एवं आरोपित <br /><br />शिक्षक ही है। वह अनेक आलोचनाओं का शिकार हो रहा है। उसकी कर्तव्य निष्ठा पर अनेक सवाल उठाए जा रहे हैं। फिल्म <br /><br />जगत ने उसकी इस छवि को बिगाड़ने में विशिष्ट भूमिका निभाई है। ऐसे में इस व्यवसाय की ओर से यदि नई पीढ़ी उदासीन <br /><br />हो तो आश्चर्य ही क्या ?<br /><br />समाज की इस दशा को देखकर मन में अनेक प्रश्न उठते हैं। सबसे अधिक विचारणीय विषय यह है कि कोई भी व्यक्ति इस <br /><br />व्यवसाय की ओर क्योंकर आकृष्ट हो? वेतन कम, तनाव अधिक , आलोचनाएँ पल-पल और सम्मान ? नदारद। एक फिल्म <br /><br />में उसे बच्चों का टिफिन खाता दिखाया जाता है और दूसरी में उसे बच्चों पर अनाचार-अत्याचार करता या बच्चों के साथ <br /><br />रोंमांस करता दिखाया जाता है। ऊपर से मीडिया ……मैं मानती हूँ कि बालकों को मारना,पीटना या प्रताड़ित करना उचित नहीं <br /><br />किन्तु सकारण कभी-कभी अध्यापक को कठोर होना पडता है। प्यार से पढ़ाने की बात सही है किन्तु कभी एक बार अध्यापक <br /><br />के स्थान पर आकर देखो। जो समस्याएँ अध्यापक अनुभव करते हैं उन्हें बिना समझे उन्हे अदालत में घसीटना कितना उचित <br /><br />है?<br />वर्तमान समय मे स्वः अनुशासन जैसे शब्द कोई नहीं जानता। भय बिनु होय न प्रीति भी पूरी तरह ठुकराई नहीं जा सकती। <br /><br />अध्यापक बच्चों को सुधारने के लिए कभी उन्हे दंडित भी करता है। बच्चों की अनुशासन हीनता सीमा का अतिक्रमण कर चुकी <br /><br />है। विद्यार्थी कक्षा में बेशर्मी करे और अध्यापक मूक रहे- यही चाहते हैं सब ? क्या हो सकेगा राष्ट्र निर्माण ?<br /><br />आज कक्षा में दस छात्र पढ़ना चाहते हैं और ३० नहीं। तब क्यों शिक्षा को आवश्यक बना कर उनपर लादा जा रहा है?<br /><br />मैं बहुत बार ऐसे छात्रों को देखकर सोचती हूँ क्यों ना पढ़ने के लिए बाध्य किया जा रहा है? जबरदस्ती पढ़ाए जाने पर क्या वो <br /><br />शिक्षा का उचित लाभ उठा पाएँगें?<br /><br />माता- पिता के पास समय नहीं है, अध्यापक को सुधार की आग्या नहीं है फिर कैसे होगा राष्ट्र निर्माण ? और सम्मान भी<br /> <br />ना मिला तो कौन बनेगा अध्यापक ???शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-29230343479574274982009-09-26T03:57:00.001-07:002009-09-26T03:57:56.746-07:00कलम आज उनकी जय बोलप्रिय पाठको! २३ सितम्बर का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। आज ही के दिन राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जी का जन्म हुआ था। दिनकर जी एक ऐसे कवि थे जिन्होने अपनी कविता से मानसिक क्रान्ति पैदा की। जीवन की कला के इस सच्चे कलाकार ने देश की रक्षा के लिए ही नहीं, परिवार की रक्षा के लिए भी संघर्ष किया। दिन-रात रोटी कमाई तथा अवसाद के क्षणों में काव्य लिखा। इनकी प्रशंसा करते हुए भगवती चरण वर्मा जी ने कहा था- दिनकर हमारे युग के एकमात्र नहीं तो सबसे अधिक प्रतिनिधि कवि थे। किन्तु दुख की बात तो यह थी कि जीवन का सर्वोत्तम काल रोटी-रोज़ी कमाने में बीत गया। <br />दिनकर जी का मानना था कि कविता केवल कविता है। मानवीय वेतना के तल में जो घटनाएँ घटती हैं, जो हलचल मचती है, उसे शब्दों में अभिव्यक्ति देकर हम संतोष पाते हैं। यदि देश और समाज को इससे शक्ति प्राप्त होती है तो यह अतिरिक्त लाभ है। दिनकर जी साहित्य में रवीन्द्र नाथ , इकबाल तथा इलियट से प्रभावित थे। <br />प्रभावशाली तेजस्वी व्यक्तित्व होने के साथ-साथ आवेश में भी जल्दी आते थे। ताँडव कविता में उनका यही रूप मिलता है। १९३५ में उन्होने कवि-सम्मेलन आयोजित किया तथा अंग्रेजों के विरूद्ध कविता पढी। अंग्रेजों के कान खड़े होगए। इसी समय रेणुका निकली जिसका स्वागत करते हुए सम्पादकीय में लिखा गया- रेणुका के प्रकाशन पर हिन्दी वालों को उत्सव मनाना चाहिए। अंग्रेज पुनः सजग हो गए। उसका अनुवाद करवाया गया तथा हुँकार प्रकाशित होने पर उन्हें चेतावनी भी दी गई। विशेष बार यह थी कि विद्रोह का बीज बोने वाला कवि अंग्रेज सरकार की नौकरी भी कर रहा था और कविता के माध्यम से क्रान्ति का मंत्र भी फूँक रहा था। उन्हें दंड मिला- ४ साल में २२ तबादले हुए किन्तु दिनकर जी की कलम ना रूकी। सामधेनी में उन्होने गर्व से कहा-<br />हम दे चुके लहू हैं, तू देवता विभा दे<br />अपने अनल -विशिख से आकाश जगमगा दे।<br />उन्माद बेकसी का उत्थान माँगता हूँ<br />विस्फोट माँगता हूँ, तूफान माँगता हूँ।<br />उनकी कविता देशभक्ति के दीप जलाती रही । स्वाधीनता के लिए संघर्ष तीव्र होते रहे और कवि की लेखनी उनका उत्साह बढ़ाती रही- <br />यह प्रदीप जो दीख रहा है, झिलमिल दूर नहीं है।<br />थक कर बैठ गए क्या भाई, मंज़िल दूर नहीं है।<br />१९३९ -४५ तक राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत लिखते रहे। सरकारी नौकरी की विवशता और गुलामी झेलते हुए भी राष्ट्रीयता का निर्भीक उद्घोष किया। कुरूक्षेत्र, रेणुका, नील कुसुम और उर्वशी उनके ४ स्तम्भ बन गए।<br /> <br />प्रभावशाली कवि को आवेश में आते देर ना लगती थी। १०४९ में जब वे वैद्यनाथ धाम गए तो उन्होने वहाँ ग्रामीण महिलाओं को जल चढ़ाने की प्रतीक्षा में काँपते देखा। पंडा किसी यजमान से पूजा करवा रहा था। फौरन दिनकर जी आवेश में आगए और बोले- हे महादेव लोग मुझे क्रान्तिकारी कवि कहते हैंऔर आप पंडे के गुलाम हो गए? इसलिए अगर मैं जल चढ़ाऊँ तो मेरे प्रशंसकों का अपमान होगा। इतना कहकर सुराही शंकर के माथे पर दे मारी। <br />पूँजीवाद के विरूद्ध उनके मन में आक्रोष था। विनय उनका स्वाभाविक गुण था। राष्टपति ने जब उनको अलंकृत पद्मभूषण से किया तब उन्होने अपनी प्रशंसा सुनकर मैथिली शरण गुप्त से कहा- आप सब के चरणों की धूल भी मिल जाए तो उसे अपने माथे पर लगा कर अभिमान नष्ट कर लूँ। <br />क्रोध और भावुकता के वे मिश्रण थे। एकबार अफसरी शान में एक गरीब आदमी पर छड़ी चला दी। लेकिन रात भर रोते रहे और सुबह उसे बुलाकर क्षमा माँगी और उसे रूपए दिए। जब तक वहाँ रहे उसकी मदद करते रहे। एक बार मद्रास में हिन्दी प्रचार सभा में उनका भाषण हो रहा था। एक छात्रने उनसे पूछा- क्या जीवन में भी आप उतने ही क्रोधी हैं जितने काव्य में दिखाई देते हैं ? दिनकर जी ने कहा- हाँ। किन्तु क्रोध के बाद मुझे रोना आता है। <br />गोष्ठियों में प्रथम कोटि के नागरिक का व्यवहार करते। प्रतिवर्ष फिल्मों की राष्टीय पुरस्कार समीति के सदस्य रहते। संगीत, नाटक, साहित्य अकादमी और आकाशवाणी की राष्ट्रीय सलाहकार समिति के कर्मठ सदस्य रहे। लेकिन देहाती संस्कार उनमें प्रबल थे। निपट किसानों के समान खेनी भी खाते थे। स्वभाव से ईमानदार थे किन्तु नकली विनम्रता से उन्हें चिढ़ थी।<br />राष्ट-कवि के रूप में प्रसिद्धि रेणुका के साथ ही प्राप्त हो गई थी , हुँकार से और व्यापक हुई। कलाकार कहलाने के लिए मात्र कल्पना में भटकना उन्हें बिल्कुल भी प्रिय ना था। हुँकार के बाद रसवन्ती आई। कुरूक्षेत्र का प्रकाशन बाद में हुआ। वे आरम्भ से ही सोचते थे- हिंसा का प्रतिकार हिंसा से ही लेना पडता है-<br />क्षमा शोभती उसी भुजंग को जिसके पास गरल हो<br />उसको क्या जो दन्त हीन, विषरहित,विनीत,सरल हो।<br />वे देश में साधु-संतो की अपेक्षा वीरों की आवश्यकता पर बल देते थे-<br />रे! रोक युधिष्टिर को ना यहाँ, जाने दे उसको स्वर्ग धीर।<br />पर फिरा हमें गाँडीव गदा, लौटा दे अर्जुन -भीम वीर।<br />जिस भ्रष्टाचार से देश आज परेशान है उसका संकेत दिनकर जी ने बहुत पहले ही दे दिया था। उन्होने लिखा था- टोपी कहती मैं थैली बन सकती हूँ,<br />कुरता कहता मुझे बोरिया ही कर लो।<br />२५ अप्रैल १९७४ को यह महान आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई। साहित्याकाश में दिनकर जी सदा-सर्वदा विराजमान रहेंगें और हर युग में उनकी कविता राष्टीय भावनाओं का संचार करती रहेगी। उस महान साहित्यकार को मेरा शत-शत प्रणाम।शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-85158407015783557492009-09-15T09:29:00.000-07:002009-09-15T09:29:00.530-07:00हिन्दी दिवसहम सब<br /><br /> हिन्दी दिवस तो मना रहे हैं <br /><br />जरा सोचें<br /><br /> किस बात पर इतरा रहें हैं ?<br /><br />हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा तो है <br /><br />हिन्दी सरल-सरस भी है <br /><br />वैग्यानिक और<br /><br /> तर्क संगत भी है ।<br /><br />फिर भी--<br /><br />अपने ही देश में <br /><br />अपने ही लोगों के द्वारा<br /><br />उपेक्षित और त्यक्त है ------<br /><br />---------------जरा सोचकर देखिए<br /><br />हम में से कितने लोग<br /><br />हिन्दी को अपनी मानते हैं ?<br /><br />कितने लोग सही हिन्दी जानते हैं ?<br /><br />अधिकतर तो--<br /><br />विदेशी भाषा का ही<br /><br />लोहा मानते है ।<br /><br />अपनी भाषा को <br /><br />उन्नतिका मूल मानते हैं ?<br /><br />कितने लोग<br /><br /> हिन्दी कोपहचानते हैं ?-----------------<br /><br />--------भाषा तो कोई भी बुरी नहीं<br /><br />किन्तु हम <br /><br />अपनी भाषा से<br /><br />परहेज़ क्यों मानते हैं ?<br /><br />अपने ही देश में<br /><br /> अपनी भाषा की<br /><br /> इतनीउपेक्षा <br /><br />क्यों हो रही है<br /><br />हमारी अस्मिता <br /><br />कहाँ सो रही है ?<br /><br />व्यवसायिकता और लालच की<br /><br />हद हो रही है ।-----------------<br /><br />--इस देश में <br /><br />कोई फ्रैन्च सीखता है<br /><br /> कोई जापानी<br /><br />किन्तु हिन्दी भाषा<br /><br />बिल्कुल अनजानी <br /><br />विदेशी भाषाएँ <br /><br />सम्मान पा रही हैं <br /><br />औरअपनी भाषा <br /><br />ठुकराई जारही है ।<br /><br />मेरे भारत के सपूतों <br /><br /><br />ज़रा तो चेतो ।<br /><br />अपनी भाषा की ओर से<br /><br />यूँ आँखें ना मीचो ।<br /><br />अँग्रेजी तुम्हारे ज़रूर काम आएगी ।<br /><br />किन्तु <br /><br />अपनी भाषा तो<br /><br />ममता लुटाएगी ।<br /><br />इसमें अक्षय कोष है<br /><br /> प्यार से उठाओ<br /><br /> इसकी ग्यान राशि से<br /><br />जीवन महकाओ ।<br /><br />आज यदि कुछ भावना है<br /><br /> तो राष्ट्र भाषा को अपनाओ ।शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-61066809824322778822009-03-07T07:53:00.001-08:002009-03-07T07:59:00.908-08:00आधुनिक नारी<div align="center"><br /><div style="text-align: right;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitN-ksCiMpPRQi1FEBQD1ml4JegupK7UrUZ_qvs4jw657BfR1TRhKlNwNyGsQuzUcMKZYfPmFBNDqDCWTH5GeaDECiWXmqBvcx3RZ6tBh31BFvzB0f9oU1q_xO3CILIDIdm8Ll4DbaDVb3/s1600-h/adhunik+nari.jpg"><br /></a></div><br /><br /><span>आधुनि</span><span><span><span>क</span></span></span> नारी</div><br /><div align="center">बाहर से टिप-टाप</div><br /><div align="center">भीतर से थकी-हारी </div><br /><div align="center">।सभ्य, सुशिक्षित, सुकुमारी</div><br /><div align="center">फिर भी उपेक्षा की मारी</div><br /><div align="center">।समझती है जीवन में</div><br /><div align="center">बहुत कुछ पाया है</div><br /><div align="center">नहीं जानती-ये सब </div><br /><div align="center">छल है, माया है।</div><br /><div align="center">घर और बाहर </div><br /><div align="center">दोनों मेंजूझती रहती है।</div><br /><div align="center">अपनी वेदना मगर</div><br /><div align="center">किसी से नहीं कहती है </div><br /><div align="center">।संघर्षों के चक्रव्यूह</div><br /><div align="center">जाने कहाँ से चले आते हैं ?</div><br /><div align="center">विश्वासों के सम्बल </div><br /><div align="center">हर बार टूट जाते हैं </div><br /><div align="center">किन्तु उसकी जीवन शक्ति</div><br /><div align="center">फिर उसे जिला जाती है </div><br /><div align="center">।संघर्षों के चक्रव्यूह से</div><br /><div align="center">सुरक्षित आ जाती है ।</div><br /><div align="center">नारी का जीवन </div><br /><div align="center">कल भी वही था-</div><br /><div align="center">आज भी वही है ।</div><br /><div align="center">अंतर केवल बाहरी है ।</div><br /><div align="center">किन्तुचुनौतियाँ </div><br /><div align="center">हमेशा सेउसने स्वीकारी है </div><br /><div align="center">।आज भी वह </div><br /><div align="center">माँ-बेटी तथा </div><br /><div align="center">पत्नी का कर्तव्य निभा रही है ।</div><br /><div align="center">बदले में समाज से</div><br /><div align="center">क्या पा रही है ?</div><br /><div align="center">गिद्ध दृष्टि </div><br /><div align="center">आज भी उसेभेदती है ।</div><br /><div align="center">वासना आज भी रौंदती है ।</div><br /><div align="center">आज भी उसे कुचला जाता है ।</div><br /><div align="center">घर, समाज व परिवार मेंउसका </div><br /><div align="center">देने का नाता है ।</div><br /><div align="center">आज भी आखों में आँसू</div><br /><div align="center">और दिल में पीड़ा है ।</div><br /><div align="center">आज भी नारी-श्रद्धा और इड़ा है ।</div><br /><div align="center">अंतर केवल इतना है </div><br /><div align="center">कल वह घर की शोभा थी</div><br /><div align="center">आज वह दुनिया को महका रही है ।</div><br /><div align="center">किन्तु आधुनिकता के युग में</div><br /><div align="center">आज भी ठगी जा रही है ।</div><br /><div align="center">आज भी ठगी जा रही है </div>शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com19tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-60714151098999751942009-01-25T19:44:00.000-08:002009-01-25T19:50:56.817-08:00लोकतंत्र<span style="font-size:130%;">लोकतंत्र<br />एक असफल शासन प्रणाली<br /><span class=""></span>धूर्तों की क्रीड़ा<br />मासूमों की पीड़ा<br />पराजित जीवन मूल्य<br />विजित नैतिकता<br />दानवों का अट्टाहस<br /><span class=""></span>देवों का रूदन<br />नेता सूत्रधार<br />जनता कठपुतली<br />नित्य नवीन योजनाएँ<br /><span class=""></span>बहुत सी वर्जनाएँ<br />संसद में शोर<br /><span class=""></span>आतंक का जोर<br />आरोप-प्रत्यारोप<br /><span class=""></span>निष्कर्ष-----?<br />शून्य --<br />टूटते विश्वास<br />खंडित प्रतिमाएँ<br />धार्मिक संकीर्णताएँ<br />चहुँ दिशि आहें<br /><span class=""></span>ऊफ़! ये लोकतंत्र</span>शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-47955816984500808602009-01-24T06:20:00.000-08:002009-01-25T07:57:45.935-08:00सुभाष<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOr8ciYPbXlCNtje8yFuRQxr8TwPWxxSoSU_iIo8Afs_asqP_vio7TED9g_xxW6Pn_sTqUbTX3Lh5YDbVn_0GQUt7JPels6fDvIPSj9oYEV_ykcVcQaN6XzOxzyVa5aiiURBxTl7gSPZSH/s1600-h/pic+of+subhash.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5294866204210803826" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 82px; CURSOR: hand; HEIGHT: 125px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhOr8ciYPbXlCNtje8yFuRQxr8TwPWxxSoSU_iIo8Afs_asqP_vio7TED9g_xxW6Pn_sTqUbTX3Lh5YDbVn_0GQUt7JPels6fDvIPSj9oYEV_ykcVcQaN6XzOxzyVa5aiiURBxTl7gSPZSH/s200/pic+of+subhash.jpg" border="0" /></a><br /><div><span style="font-size:130%;">हमारे इतिहास में सुभाष के अतिरिक्त ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं हुआ जो एक साथ महान सेनापति, वीर सैनिक, राजनीति का अद्भुत खिलाड़ी और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरूषों, नेताओं के समकक्ष साधिकार बैठकर चर्चा करने वाला, तथा कूटनीतिग्य हो। उन्होने करीब-करीब पूरे यूरोप में भारत की स्वतंत्रता के लिए अलख जगाया। वे प्रकृति से साधु, ईश्वर भक्त तथा तन एवं मन से देशभक्त थे। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसका मार्ग कभी भी स्वार्थों ने नहीं रोका, जिसके पाँव लक्ष्य से पीछे नहीं हटे, जिसने जो भी स्वप्न देखे, उन्हें साधा और जिसमें सच्चाई के सामने खड़े होने की अद्भुत क्षमता थी।<br />अल्पावस्था में अंग्रेजों का भारतीयों के साथ व्यहार देखकर पूछ बैठे- दादा हमें कक्षा में आगे की सीटों पर बैठने क्यों नहीं दिया जाता ? वह जो भी करता, आत्म विश्वास से करता। अंग्रेज अध्यापक उसके अंक देखकर हैरान रह जाते। कक्षा में सबसे अधिक अंक लाने पर भी जब छात्र वृत्ति अंग्रेज बालक को मिली तो उखड़ गया। मिशनरी स्कूल छोड़ दिया। उसी समय अरविन्द ने कहा- हममें से प्रत्येक भारतीय को डायनमो बनना चाहिए जिससे कि हममें से यदि एक भी खड़ा हो जाए तो हमारे आस-पास हजारों व्यक्ति प्रकाशवान हो जाएँ। अरविन्द के शब्द उसके मस्तिष्क में गूँजते थे।<br />सुभाष सोचते- हम अनुगमन किसका करें? भारतीय जब चुपचाप कष्ट सहते तो वे सोचते-धन्य हैंये वीर प्रसूत। ऐसे लोगों से क्या आशा की जासकती है?<br />वे अंग्रेजी शिक्षा को निषेधात्मक शिक्षा मानते थे। किन्तु पिता ने समझाया -हम भारतीय जब तक अंग्रेजों से प्रशासनिक पद नहीं छीनेंगें,तब तक देश का भला कैसे होगा ? सुभाष आई सी एस की परीक्षा में बैठे।वे प्रतियोगिता में उत्तीर्ण ही नहीं हुए, चतुर्थ स्थान पर रहे। किन्तु देश की दशा से अनभिग्य नहीं थे। नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। सारा देश हैरान रह गया। उन्हें समझाते हुए कहा गया- तुम जानते भी हो कि तुम लाखों भारतीयों के सरताज़ होंगें?हज़ारों हज़ार तुम्हारे देशवासी तुम्हें नमन करेंगें?सुभाष ने कहा- मैं लोगों पर नहीं उनके मनों पर राज्य करना चाहता हूँ। उनका हृदय सम्राट बनना चाहता हूँ।<br />वे नौकरी छोड़ भारत आगए। २३ वर्ष का नवयुवक विदेश से स्वदेशी बनकर लौटा। इस समय पूरा देश किसी नेतृत्व की प्रतीक्षा कर रहा था। सुभाष पूरे देश को अपने साथ ले चल पड़े। वे गाँधी जी से मिले। उनके विचार जाने , पर उनको यह बात समझ नहीं आई कि आन्दोलनकारी हँसते-हँसते लाठियाँ खा लेंगें। कब तक? वे चितरंजन दास जी के पास गए। उन्होने उनको देश को समझने और जानने को कहा। सुभाष देश भर में घूमें और निष्कर्ष निकाला- हमारी सामाजिक स्थिति बद्तर है,जाति-पाति तो है ही, गरीब और अमीर की खाई भी समाज को बाँटे हुए है। निरक्षरता देश के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है। इसके लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है।<br />कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होने कहा- मैं देश से अंग्रेजों को निकालना चाहता हूँ। मैं अहिंसा में विश्वास रखता हूँ किन्तु इस रास्ते पत चलकर स्वतंत्रता काफी देर से मिलने की आशा है। उन्होने क्रान्तिकारियों को सशक्त बनने को कहा।वे चाहते थे कि अंग्रेज भयभीत होकर भाग खड़े हों। वे देश सेवा के काम पर लग गए। दिन देखा ना रात। उनकी सफलता देख देशबन्धु ने कहा था- मैं एक बात समझ गया हूँ कि तुम देश के लिए रत्न सिद्ध होंगें।<br />अंग्रेजों का दमन चक्र बढ़ता गया। बंगाल का शेर दहाड़ उठा- दमन चक्र की गति जैसे-जैसे बढ़ेगी, उसी अनुपात में हमारा आन्दोलन बढ़ेगा। यह तो एक मुकाबला है जिसमें जीत जनता की ही होगी। अंग्रेज जान गए कि जब तक सुभाष, दीनबन्धु,मौलाना,और आज़ाद गिरिफ्तार नहीं होते, स्थिति में सुधार नहीं हो सकता। उन्होने कहा- सबसे अधिक खतरनाक व्यक्तित्व सुभाष का है। इसने पूरे बंगाल को जीवित कर दिया है।<br />इन्हें गिरिफतार कर लिया गया। मातृभूमि के प्रति , उसकी पुन्य वेदी पर इनका पहला पुण्य दान था।<br />सुभाष ने जेल में चितरंजन दास जी से काफी अनुभव प्राप्त किया। उन्हें मुसलमानों से भी पूर्ण समर्थन मिला। वे कहते थे- मुसलमान इस देश से कोई अलग नहीं हैं। हम सब एक ही धारा में बह रहे हैं। आवश्यकता है सभी भेदभाव को समाप्त कर एक होकर अपने अधिकारों के लिए जूझने की। ६ महीनों में ग्यान की गंगा कितनी बही, किसी ने न देखा किन्तु जब वह जेल से बाहर आए तो तप पूत बन चुके थे। इसी समय बंगाल बाढ़ ग्रस्त हो गया। सुभाष ने निष्ठावान युवकों को संगठित किया और बचाव कार्य आरम्भ कर दिया। लोग उन्हें देखकर सारे दुःख भूल जाते थे।<br />वे बाढ़ पीड़ितों के त्राता बन गए। सुभाष चितरंजन जी की प्रेरणा से २ पत्र चलाने लगे। साधारण से साधारण मुद्दों से लेकर सचिवालय की गुप्त खबरों का प्रकाशन बड़ी खूबी से किया। कोई भारतीय इतना दबंग हो सकता है -अंग्रेज हैरान थे। १९२४ को पुनः गिरिफ्तार हुए। कुछ समय बाद उन्हें माँडले जेल लेजाया गया। सुभाष ने कहा- मैं इसे आज़ादी चाहने वालों का तीर्थ स्थल मानता हूँ। मेरा सौभाग्य है कि जिस स्थान को तिलक, लाला लाजपत राय, आदि क्रान्तिकारियों ने पवित्र किया , वहाँ मैं अपना शीष झुकाने आया हूँ।<br />सारा समय स्वाध्याय में लगाया। वहाँ जलवायु वर्षा, धूप, सर्दी का कोई बचाव ना था और जलवायु शिथिलता पैदा करती थी, जोड़ों के अकड़ जाने की बीमारी होती थी तथा बोर्ड लकड़ी के बने थे। अंग्रेज बार-बार उनको जेल भेजते रहे और रिहा करते रहे। उन्होने एक सभा में कहा- यदि भारत ब्रिटेन के विरूद्ध लड़ाई में भाग ले तो उसे स्वतंत्रता मिल सकती है। उन्होने गुप्त रूप से इसकी तैयारी शुरू कर दी। २५ जून को सिंगापुर रेडयो से उन्होने सूचना दी कि आज़ाद हिन्द फौज का निर्माण हो चुका है। अंग्रेजों ने उनको बन्दी बनाना चाहा , पर वे चकमा देकर भाग गए।<br />२ जुलाई को सिंगापुर के विशाल मैदान में भारतीयों का आह्वान किया। उन्होने अपनी फौज में महिलाओं को भी भर्ती किया। उनको बन्दूक चलाना और बम गिराना सिखाया।२१ अक्टूबर को उन्होने प्रतिग्या की- मैं अपने देश भारत और भारतवासियों को स्वतंत्र कराने की प्रतिग्या करता हूँ। लोगों ने तन,मन और धन से इनका सहयोग किया। उन्होने एक विशाल सभा में घोषणा की- तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा। कतार लग गई। सबसे पहले महिलाएँ आईं। आर्थिक सहायता के लिए उन्होने अपने सुहाग के आभूषण भी इनकी झोली में डाल दिए।<br />१९४४ में उन्होने जापान छोड़ा। १८ अगस्त को नेताजी विमान द्वारा जापान के लिए रवाना हुए और विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। किसी को विश्वास ही नहीं हुआ। लोगों को लगा कि किसी दिन वे फिर सामने आ खड़े होंगें। आज इतने वर्षों बाद भी जन मानस उनकी राह देखता है। वे रहस्य थे ना, और रहस्य को भी कभी किसी ने जाना है ?</span></div>शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-48293832058439941042008-12-16T03:26:00.000-08:002008-12-16T03:26:02.116-08:00हिन्द-युग्म: 28 दिसम्बर 2008 को हिन्द-युग्म मनाएगा वार्षिकोत्सव (मुख्य अतिथि- राजेन्द्र यादव)<a href="http://kavita.hindyugm.com/2008/12/be-part-of-hind-yugm-varshikotsav.html">हिन्द-युग्म: 28 दिसम्बर 2008 को हिन्द-युग्म मनाएगा वार्षिकोत्सव (मुख्य अतिथि- राजेन्द्र यादव)</a>शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-17736145897124888772008-11-17T05:16:00.000-08:002008-11-17T05:19:00.770-08:00चाचा नेहरू के पत्रचाचा नेहरू एक ऐसे व्यक्तित्व रहे जिनकी आँखों में बच्चों के लिये बेहद प्रेम था तथा उनकी बाँहें बच्चों को गोद में लेने के लिए सदा आतुर रहती थी। बच्चों से उनका प्रेम असीम था। जानते हैं बच्चों! आज़ादी के लिए जब वे जेल गए, तब अपना अधिकतर समय उन्होने पत्र लेखन में बिताया। वैसे तो वे पत्र उन्होने अपनी बेटी इन्दु के नाम लिखे थे किन्तु हर बच्चा उनसे बहुत कुछ सीख सकता है। उनके कुछ उदाहरण आपके लिए प्रस्तुत कर रही हूँ-<br />प्यारे बच्चों !<br />तुम लोगों के बीच रहना मैं पसंद करता हूँ। तुमसे बातें करने में और तुम्हारे साथ खेलने में सचमुच मुझे बड़ा मज़ा आता है। थोड़ी देर के लिए मैं यह भूल जाता हूँ कि मैं बेहद बूढ़ा हो चला हूँ और मेरा बचपन मुझसे सैंकड़ो हज़ारों कोस दूर हो गया है ..... हमारा देश एक बहुत बड़ा देश है और हम सब को-मिलकर अपने देश के लिए बहुत कुछ करना है। हममें से हर कोई अगर अपने हिस्से का काम पूरा करता रहेगा तो इन सब कामों का ढेर लगता रहेगा और हमारा मुल्क तरक्की के रास्ते पर तेज़ी से आगे बढ़ेगा।<br />२ मैं आज तुम्हें पुराने जमाने की सभ्यता की सभ्यता का कुछ हाल बताना चाहता हुँ। लेकिन इससे पहले हमें यह समझ लेना चाहिए कि सभ्यता का क्या अर्थ है। अच्छा करना, सुधारना , जंगली आदतों की जगह अच्छी आदतें पैदा करना। यह सब जानने के लिए तुमको खुद सब कथाओं को पढ़ना चाहिए।<br />३ अगर तुम मेरे पास होते तो मैं तुमसे उस खूबसूरत दुनिया के बारे में बातें करना पसन्द करता। मैं तुमसे फूलों और पेड़ों , परिन्दों और जानचरों, सितारों और पहाड़ों हिम की नदियों और ऐसी दूसरी अनेक चीजों के बारे में बात करता जो हमारे इर्द-गिर्द हैं। उन्होने ऐसे ही अनेक पत्र और लेख लिखे जो आज भी हम सबके लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। उनमें कुछ अंश तो ऐसे हैं जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता । एक बार उन्होने कहा था- यदि कोई मुझे याद करर तो मैं चाहूँगा कि वह यह कहे कि इस आदमी ने पूरे दिल और दिमाग से हिन्दुस्तान से प्यार किया और बदले में उन्होने भी उसे उतना ही चाहा और बेहद मुहब्बत दी। आपका और मेरा काम आज और कल के भारत को बनाना है। लेकिन उसके बनाने के लिए हमें अपने प्राचीन इतिहास को कुछ समझना है और उसमें जो अच्छी बातें हैं , उनका लाभ उठाना है। उसमें जो बुरी बातें हैं उनसे बचना है। लोकतंत्र का मतलब मैं यह समझता हूँ कि समस्याएँ शान्ति पूर्वक सुलझाई जाएँ। अगर आदमी में दहशत भर जाए तो वह ना ठीक से सोच सकता है, ना काम कर सकता है। खतरा चाहे मौजूद हो या आने वाला हो डर से उसका सामना नहीं किया जा सकता।<br />शान्ति और सत्य का रास्ता ही मनुष्य का सच्चा रास्ता है।<br />उन्होने कहा- परिवर्तन जरूरी है, लेकिन उसके साथ परम्परा भी जरूरी है। भविष्य की इमारत वर्तमान और अतीत की बुनियाद पर ही खड़ी होती है। अगर अपने इतिहास को हम भुला देंगें और उसे छोड़ देंगें तो हमारी जड़ें कट जाएँगी और हमारा जीवन रस सूख जाएगा।<br />उन्होने बच्चों को कहा- बुराई के सामने कभी सिर न झुकाना चाहिए। लेकिन बुराई का सामना डर और गुस्से से और बुरी बातों से नहीं करना चाहिए। बुराई का सामना करते समय हमें दिमाग ठंडा रखना चाहिए।<br />वे गरीबी और अभाव को समाप्त करना चाहते थे। इसीलिए कहा- जब तक दुनिया के किसी भी हिस्से में गरीबी और अभाव रहेगा, दुनिया में खतरा भी बना रहेगा। धर्म का सम्बंन्ध नैतिक और सदाचार की बातों से है।<br />हिंसा का रास्ता वे खतरे का रास्ता बताते थे। वे काम को महत्व देते थे। इसीलिए इतने बड़े पद पर होने पर भी दिन में १८ से २० घंटे काम करते थे। वे कहते थे- मैं ऐसे आदमी चाहता हूँ जो काम को धर्म समझ कर करें। जो बुराई के सामने सिर ना झुकाएँ। सच्चाई से लड़ने के लिए तैयार रहें। उन्होने बच्चों को देश सेवा की प्रेरणा देते हुए कहा- भारत की सेवा से अभिप्राय करोड़ों लोगों की सेवा से है। इसका अर्थ है कि गरीबी, अग्यानता और असमानता समाप्त कर दी जाए। हर आँख से आँसू पोंछने का प्रयास किया जाए। परंतु जब तक लोगों की आँखों में आँसू हैं और वे पीड़ित हैं तब तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा।<br />उन्होने कहा- भारत की जनता आजादी पा चुकी है, किन्तु इसके मीठे फल का स्वाद चखने के लिए उसे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी होंगीं।<br />बच्चों! नेहरू जी के विषय में जितना भी लिखूँ कम है। बस यह समझ लो कि उनको बच्चों से बहुत आशाएँ थीं और आपको उनके आदर्शों पर चलकर उनका सपना पूरा करना है। ईमानदार, देशभक्त और कर्मठ बनना होगा। भारत की तुम आशाएँ हो। नेहरू जी के समान जीवन में उच्च आदर्श और आत्म विश्वास लेकर आगे बढ़ना है, फिर कोई भी मुश्किल तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगी। जय भारत।शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-88750101756651348742008-10-22T08:12:00.000-07:002008-10-22T08:21:20.491-07:00आओ हम सब दीप जलाएँ<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZ03py_GkoimTdrxISJsqcgNA8IXJZNK8THqS9XzoX9uR4Vdpa_uAn6e2LQpHsCtuug0cQ2OoEFw2q4GvmKpKbOEA18eM_Y6TrEsKkw9KcPvAtu38JLsWXCe-WltWVKeTbhaomn-D5BJOI/s1600-h/diwa6.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5259998609631425906" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; CURSOR: hand; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZ03py_GkoimTdrxISJsqcgNA8IXJZNK8THqS9XzoX9uR4Vdpa_uAn6e2LQpHsCtuug0cQ2OoEFw2q4GvmKpKbOEA18eM_Y6TrEsKkw9KcPvAtu38JLsWXCe-WltWVKeTbhaomn-D5BJOI/s200/diwa6.jpg" border="0" /></a><br /><div align="center">आओ हम सब दीप जलाएँ </div><br /><div align="center">दीपों की इक लड़ी </div><br /><div align="center">बनाएँघर के अँधियारे के संग-</div><br /><div align="center">संगमन का भी अन्धकार <span class=""></span></div><br /><div align="center"><span class=""></span>हम सब दीप जलाएँ </div><br /><div align="center"></div><br /><div align="center">प्रेम प्यार से घर-घर जाएँ </div><br /><div align="center">दुखियों को भी गले लगाएँ </div><br /><div align="center">उनको भी खुशियाँ दे आएँ </div><br /><div align="center">आँखों में सपने दे आएँ </div><br /><div align="center">आओ हम सब दीप जलाएँ </div><br /><div align="center"></div><br /><div align="center">इस जग में है बहुत -अँधेरा</div><br /><div align="center">क्रोध-वैर ने सबको घेरा </div><br /><div align="center">करते हैं सब तेरा-मेरा </div><br /><div align="center">एक दीप उनको दे आएँ </div><br /><div align="center">तेरा-मेरा भाव भुलाएँ</div><br /><div align="center"><span class=""></span>आओ हम सब दीप जलाएँ </div><br /><div align="center"></div><br /><div align="center"><span class=""></span>दीप उनको दे आएँ तेरा-मेरा भाव भुलाएँआओ हम सब दीप जलाएँ </div>शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-78402099599227635442008-09-22T07:20:00.000-07:002008-09-22T07:21:17.388-07:00जीवनजीवन<br />जीवन क्या है ?<br />आशाऒं- निराशाऒं का<br />क्रीड़ास्थल ।<br /><br />एक आती है,<br />दूसरी जाती है ।<br />एक सपने जगाती है ।<br />कोमल भावनाऒं की<br />कलियाँ खिला जाती है ।<br /><br />मन्द- मन्द बयार बन<br />उन्हें सहलाती है ।<br />मन मयूर खुशी से<br />नाचने लगता है ।<br /><br />किन्तु तभी---<br />दूसरी लहर आती है ।<br />मौसम बदलता है ।<br />बयार की गति बढ़ जाती है ।<br /><br />तूफान के झोंके आते हैं ।<br />हर कली को गिराते हैं ।<br />बहारों का मौसम<br />पतझड़ में बदल जाता है ।<br /><br />सुख- दुःख का जीवन से<br />बस इतना ही नाता है ।शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com36tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-90770769937463756782008-09-13T04:12:00.000-07:002008-09-13T04:18:19.046-07:00हिन्दी-दिवस<span style="font-size:130%;"><span style="font-weight: bold;">हिन्दी-दिवस की आप सभी को बधाई। १४ सितम्बर १९४९ को संविधान में हिन्दी को राष्ट्र भाषा स्वीकार किया गया था। एक लम्बा अन्तराल बीत गया है किन्तु आज तक हम हिन्दी को वह स्थान नहीं दिला पाए जिसकी वह अधिकारिणी है। हम उसका सम्मान करते हैं किन्तु उपयोग में अंग्रेजी ही लाते हैं। अपने बच्चों को अंग्रेजी बोलने के संस्कार देते हैं, अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाते हैं और गर्व से कहते हैं हिन्दी नहीं आती। क्या सुन्दर ढंग है हिन्दी के सम्मान करने का । </span><br /><span style="font-weight: bold;">वर्तमान में हम अपनी भाषा और अपनी संस्कृति दोनो से ही दूर होते जारहे हैं। एक विदेषी भाषा सीखना बुरा नहीं किन्तु अपनी पहचान खो बैठना बुरा है। अपनी भाषा से दूर होने के कारण हम अपनी संस्कृति से भी दूर हो रहे हैं। बल्कि यों कहें कि अपनी पहचान भी खो रहे हैं। हमारी दशा उस मूर्ख जैसी है जिसके पास पूर्वजों की बहुमूल्य विरासत है किन्तु वह उसका उपयोग नहीं कर पाता और भिखारी बना रहता है। </span><br /><span style="font-weight: bold;">संसार के जितने भी राष्ट्र हैं सब अपनी भाषा को प्राथमिकता देते हैं और हम अपनी भाषा बोलने और सीखने में शर्म का अनुभव करते हैं। इसका भयानक परिणाम मैं नई पीढ़ी में देख रही हूँ। जो ना हिन्दी ठीक से पढ़ सकता है ना लिख सकता। और अंग्रेजी में पारंगत है। दोषी नई पीढ़ी नहीं दोषी हम लोग हैं। हमने उनको अपनी भाषा के संस्कार ही कहाँ दिए। हमने उसे अंग्रेजी बोलने के लिए ही प्रेरित किया। उसे कभी हिन्दी की विशेषताएँ नहीं बताई। </span><br /><span style="font-weight: bold;"> हमारी हिन्दी भाषा संसार की सर्वोत्तम भाषा है। इसकी वैग्यानिकता इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। जैसे बोली जाती है वैसे ही लिखी जाती है। तर्क संगत है। सुमधुर और सरल है। भूमावृति के कारण नित्य नवीन शब्दों को जन्म देने वाली है। एक-एक शब्द के कितने ही पर्याय वाची हैं। हर शब्द का सटीक प्रयोग होता है। अलग-अलग संदर्भों में एक ही शब्द नहीं , अलग-अलग शब्द हैं। </span><br /><span style="font-weight: bold;"> समन्वय की प्रवृति के कारण दूसरी भाषाओं के शब्दों को जल्दी ही अपने में समा लेती है। माँ के समान बड़े प्यार से सबको अपने आँचल में समा लेती है। यही कारण हैकि दूसरी भाषाओं के शब्द यहाँ आकर इसीके हो जाते हैं। फिर भी हम इसका लाभ नहीं उठा पा रहे। यह हमारा दुर्भाग्य ही तो है।</span><br /><span style="font-weight: bold;">आज विश्व के अनेक देश हिन्दी के महत्व को समझ रहे हैं। इसके शिक्षण की व्यवस्था कर रहे हैं, गोष्ठियाँ कर रहे हैं और हम इसकी उपेक्षा कर रहे हैं। </span><br /><span style="font-weight: bold;">हिन्दी-दिवस के अवसर पर मैं अपने देश वासियों को यही संदेश देना चाहूँगी कि यदि अपने स्वाभिमान और अपनी अस्मिता को बचा कर रखना है तो अपनी भाषा को महत्व देना सीखो। इसे ग्यान-विग्यान का वाहक बनाओ तथा इसमें संचित कोष का लाभ उठाओ। अपनी भाषा सीखो यही तुमको उन्नति दिलाएगी</span><br /><span style="font-weight: bold;"> यदि अपनी माँ भिखारिन रही तो पराई भी कुछ नहीं दे पाएगी।</span><br /><span style="font-weight: bold;"> जय भारत।</span><br /></span>शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-77396393471031293502008-08-30T09:23:00.000-07:002008-08-30T09:29:30.287-07:00शिक्षक दिवस नज़दीक आरहा है<strong><span style="font-size:130%;">शिक्षक दिवस नज़दीक आरहा है, किन्तु शिक्षकों की दशा देख मन घबरा रहा है। वर्तमान में सर्वाधिक चर्चित एवं आरोपित शिक्षक ही है। वह अनेक आलोचनाओं का शिकार हो रहा है। उसकी कर्तव्य निष्ठा पर अनेक सवाल उठाए जा रहे हैं। फिल्म जगत ने उसकी इस छवि को बिगाड़ने में विशिष्ट भूमिका निभाई है। ऐसे में इस व्यवसाय की ओर से यदि नई पीढ़ी उदासीन हो तो आश्चर्य ही क्या ?<br />समाज की इस दशा को देखकर मन में अनेक प्रश्न उठते हैं। सबसे अधिक विचारणीय विषय यह है कि कोई भी व्यक्ति इस व्यवसाय की ओर क्योंकर आकृष्ट हो? वेतन कम, तनाव अधिक , आलोचनाएँ पल-पल और सम्मान ? नदारद। एक फिल्म में उसे बच्चों का टिफिन खाता दिखाया जाता है और दूसरी में उसे बच्चों पर अनाचार-अत्याचार करता या बच्चों के साथ रोंमांस करता दिखाया जाता है। ऊपर से मीडिया ……मैं मानती हूँ कि बालकों को मारना,पीटना या प्रताड़ित करना उचित नहीं किन्तु सकारण कभी-कभी अध्यापक को कठोर होना पडता है। प्यार से पढ़ाने की बात सही है किन्तु कभी एक बार अध्यापक के स्थान पर आकर देखो। जो समस्याएँ अध्यापक अनुभव करते हैं उन्हें बिना समझे उन्हे अदालत में घसीटना कितना उचित है?<br />वर्तमान समय मे स्वः अनुशासन जैसे शब्द कोई नहीं जानता। भय बिनु होय न प्रीति भी पूरी तरह ठुकराई नहीं जा सकती। अध्यापक बच्चों को सुधारने के लिए कभी उन्हे दंडित भी करता है। बच्चों की अनुशासन हीनता सीमा का अतिक्रमण कर चुकी है। विद्यार्थी कक्षा में बेशर्मी करे और अध्यापक मूक रहे- यही चाहते हैं सब ? क्या हो सकेगा राष्ट्र निर्माण ?<br />आज कक्षा में दस छात्र पढ़ना चाहते हैं और ३० नहीं। तब क्यों शिक्षा को आवश्यक बना कर उनपर लादा जा रहा है?<br />मैं बहुत बार ऐसे छात्रों को देखकर सोचती हूँ क्यों ना पढ़ने के लिए बाध्य किया जा रहा है? जबरदस्ती पढ़ाए जाने पर क्या वो शिक्षा का उचित लाभ उठा पाएँगें?<br />माता- पिता के पास समय नहीं है, अध्यापक को सुधार की आग्या नहीं है फिर कैसे होगा राष्ट्र निर्माण ? और सम्मान भी ना मिला तो कौन बनेगा अध्यापक ???</span></strong>शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com22tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-10896419620393399502008-07-21T05:00:00.000-07:002008-07-21T05:08:25.527-07:00यह भी हो सकता है......<strong><span style="font-size:130%;">नारी स्वाधीनता, नारी सशक्तीकरण आदि विषयों पर बहुत पढ़ा और लिखा भी। अपनी अस्मिता एवं अपने अधिकारों की बात से मस्तक गर्व से ऊँचा कर इस बार जब मैं घर गई तो माँ को देख आँखों में आँसू आगए। उनको एक लम्बा सा भाषण दिया, अपनी डीँगें हाँकी। माँ चुपचाप सुनती रही। फिर अचानक उन्होने मुझसे प्रश्न किया- क्या तुम पूरी तरह स्वतंत्र हो? क्या आधुनिक कहलाने वाली नारी के सारे निर्णय अपने होते हैं ? मैं सकपका गई, किन्तु मैंने हार बिना माने हुए कहा- ‘हाँ । मैं अपने जीवन के सारे निर्णय स्वयं लेती हूँ। तुम्हारी तरह गिड़गिड़ाती नहीं। जो बात पसन्द नहीं साफ़ मना कर देती हूँ’। माँ मुसकुराते हुए बोली- ‘तुम्हें किसने कहा कि मैं अपने जीवन के निर्णय अपनेआप नहीं लेती ? अरे! मैने भी सारा जीवन स्वाधीनता से बिताया है। अन्तर बस इतना ही है कि मैने कभी किसी को यह जताया नहीं’।मुझे यह बात समझ नहीं आई। मैने प्रश्न वाचक दृष्टि से माँ की ओर देखा। माँ ने हँसते हुए कहा- जब काम बिना लड़ाई के चल जाए तो लड़ना क्यों?मतलब?????? देखो! हम लोगों ने भी अपनी ज़िन्दगी अपने ढँग से जी है। बस पति की निन्दा नहीं की। हर पल उसे यह विश्वास दिलाया कि उसके बिना हमारा अस्तित्व ही नहीं है। हर दम उससे डरने का नाटक किया और घर पर राज किया। पर कैसे? मैने पूछा ।‘सुनो बिटिया! आदमी बहुत बड़ा अहंकारी जीव होता है। उसे बस विश्वास दिलाए रखो कि हम उनसे डरते हैं। वह संतुष्ट हो जाएगा’- माँ ने मुसकुराते हुए कहा। हम लोग भी सदा आज़ाद रहे किन्तु कभी बिना काम झगड़ा ना करो तो शान्ति बनी रहती है। उसको इतनी फुरसत ही कहाँ है कि वह घर पर नज़र डाले। बस उसके अहंकार को चुनौती मत दो, सदा उसके सामने डरी-डरी रहो-माँ ने मुसकुराते हुए कहा। मैं माँ की बात पर हँस पड़ी- माँ तुम्हारी पीढ़ी बहुत होशियार थी। बहतु चालाक भी। और क्या ? तुम आजकल की पढ़ी-लिखी औरतें बिना कारण झगड़ा करती हैं। सारा दिन नौकरी करेंगीं, घर और बाहर दोनो सँभालेंगी और अपने को होशियार समझकर घर पर झगड़ा करेंगी। फिर भी समझती हैं कि वो ज्यादा होशियार और सुखी हैं।माँ की बातों को सुनकर मैं कुछ सोचने पर मज़बूर हो गई। वास्तव में माँ ठीक ही तो कह रही थी। बहस और लड़ाई करके आज नारी रिश्तों को और भी दूभर ही तो बना रही है। स्त्री-पुरूष एक दूसरे के विरोधी नहीं ,पूरक हैं फिर इतना विवाद क्यों? </span></strong>शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com24tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-75318470324239714362008-07-14T09:36:00.000-07:002008-07-15T03:36:58.524-07:00अबला नहीं सबला बन<span style="font-size:130%;">अबला नहीं सबला बन<br /><br />कल ही मैं जून माह की कादम्बिनी पढ़ रही थी। उसमें तसलीमा जी का एक लेख बहुत प्रभावी लगा। सारंश कुछ इस प्रकार था- " दूरदर्शन के एल कार्यक्रम में महिलाओं से पूछा जा रहा था कि वे किस प्रकार के पुरूषों को ज्यादा पसन्द करती हैं। यह देखकर बड़ी हैरानी हुई कि अधिकतर तारिकाएँ आक्रामक पुरूष को पसन्द करती हैं। आक्रामक माने माचो मैन। कितने आश्चर्य की बात है कि पुरूष द्वारा पीड़ित,शोषित नारी पुनः आक्रामक पुरूष चाहती है "<br />तसलीमा जी की बात से मैं भी सहमत हूँ। पुरूष तो सदा से आक्रामक ही रहा है। फिर ऐसी कामना क्यों ?<br />मुझे ऐसा लगता है कि अधिकतर स्त्रियाँ स्वभाव से ही कमजोर होती हैं। इन्हें बचपन से ही कमजोर बनाया जाता है। हमेशा पिता या भाई की सुरक्षा में रहने के कारण असुरक्षा की भावना उसके दिल में बैठ गई है। एसी भावना से प्रेरित होकर वह कभी भाई की दीर्घ आयु की कामना के लिए व्रत उपवास रखती आई है तो कभी पति की लम्बी उम्र के लिए । क्या कभी किसी भाई या पति ने इनके मंगल की कामना हेतु कोई उपवास किया है ?<br />प्रेम और समर्पण नारी का स्वभाव है। किन्तु अपनी कमजोरी के प्रति स्वीकार्य की भावना निन्दनीय है। उसकी सोच ही उसे कमजोर बनाती है। इतिहास साक्षी है कि जब भी नारी ने अपने को कमजोर समझा उसपर अत्याचार हुआ और जब भी उसने अपने आत्मबल को जगाया, अन्यायी काँप गया। स्त्री को यदि स्वाभिमान से जीना है तो सबसे पहले अपने भीतर के डर को भगाना होगा, अपनी शक्ति को पहचानना होगा । उसके भीतर छिपा भय ही उसके शोषण का कारण है।<br />अतः वर्तमान में आवश्यकता है कि हर नारी पर जीवी बनना छोड़ दे। परिवार में प्यार और मधुर सम्बन्ध अवश्य होने चाहिए किन्तु कमजोरी से ऊपर उठें और अपने बच्चों को भी सशक्त बनाएँ। आत्मविश्वास को अफनी पहचान बनाएँ क्योंकि -<br />जब भी मैने सहायता के लिए किसी को पुकारा, स्वयं को और भी कमजोर बनाया<br />जब भी आत्म विश्वास को साथी बनाया, रक्त में शक्ति का संचार सा पाया।<br />अतः मै यही कहूँगी कि- सशक्त बनें और निर्भीक रहें। इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं जो तुम नहीं कर सकती।<br />यही युग की पुकार है और यही जीत का मूल मंत्र।</span>शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-73250110914322451172008-07-05T04:34:00.000-07:002008-07-05T04:36:29.812-07:00स्वाभिमानी इला<strong><span style="font-size:130%;">प्रिय पाठकों<br />आज मैं आप सबको एक सशक्त और आत्मविश्वास से पूर्ण नारी के बारे में बताऊँगी। इस बहादुर नारी का नाम था इला। इला का विवाह एक बहुत ही घमंडी तथा क्रूर इन्सान से हुआ था। विवाह के कुछ ही दिनों बाद इला को पति द्वारा बिना कारण प्रताड़ना मिलने लगी। उसका कसूर केवल इतना ही था कि वह एक सीधी-सादी भारतीय नारी थी।वह अधिक पढ़ी-लिखी भी नहीं थी इसीलिए बहुत दिनों तक पति के अत्याचार सहती रही। उसके माता-पिता की आर्थिक स्थिति भी खराब ही थी। वह अपनी दशा से उनको और दुखी नहीं करना चाहती थी।<br />किन्तु एकदिन उसके स्वाभिमान पर गहरी चोट लगी और उसने विरोध कर दिया। परिणाम स्वरूप उसे धक्के मार-मार कर बाहर निकाल दिया गया। पति के घर से पिता के घर भी वह नहीं जा सकती थी। वह रातभर घर के बाहर बैठकर रोती रही। उसके रोने की आवाज़ सुनकर पास ही रहने वाली एक सहृदय महिला ने उसको अपने स्कूल में नौकरी दिलवा दी। उनका सहारा पाकर उसे बड़ा बल मिला।<br />चुपचाप वह काम करती रही और अपनी पढ़ाई भी करती रही। अपनी मेहनत से उसने एम ए की परीक्षा उत्तीर्ण की।<br />प्रधानाचार्या ने जब उसका परीक्षा परिणाम देखा तो उसे एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी दिला दी। अब तो इला का उत्साह और बढ़ गया। वह पढ़ाने के साथ-साथ बालिकाओं में आत्मविश्वास भी जगाने लगी।<br />उसके अच्छे स्वभाव से आस-पास के लोग भी खुश थे। वह सभी के लिए आदर्श बन गई। उसने औरों को भी यही शिक्षा दी कि अन्याय के सामने कभी भी मत झुको। जीवन के अन्तिम दिनों में भी इला मुस्कुराती रही। अपना दर्द कभी भी किसी को नहीं दिया ,बस प्यार ही बाँटा।<br />आज इला नहीं है किन्तु उसका दिया हुआ विश्वास उसकी प्रत्येक छात्रा में है। काश दुनिया की हर महिला में ऐसा स्वाभिमान आजाए जिससे कोई उसपर अत्याचार करने की बात सोच भी ना सके। इला की कथा हम सब के लिए प्रेरणा है। ऐसी ही नारियों को देख प्रसाद जी ने लिखा था-<br />नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग- पग- तल में<br />पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।</span></strong>शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-57721788316726633472008-05-21T09:02:00.000-07:002008-05-22T08:59:26.938-07:00एक और बलात्कार<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh9Mnu_McLTdU81vbT4eXjJV2kc8u0ev5xmHoVN9-qMILcZnjbUsXL0pHUOB-kK1ARpeirKV6RBnnxsfHF0t7gZZVBuZYoEJkkvjFsgMbmG22NgYCLjXAJ8yla3BV54iqzO3-4fHwpiZA89/s1600-h/kalpna1.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh9Mnu_McLTdU81vbT4eXjJV2kc8u0ev5xmHoVN9-qMILcZnjbUsXL0pHUOB-kK1ARpeirKV6RBnnxsfHF0t7gZZVBuZYoEJkkvjFsgMbmG22NgYCLjXAJ8yla3BV54iqzO3-4fHwpiZA89/s200/kalpna1.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5203232427371948866" border="0" /></a><br /><p class="MsoNormal"><span style=""><span style=""> </span><span style=""> </span><span style=""> </span></span><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:20;" lang="HI" >एक और बलात्कार</span></b><b><span style="font-size:20;"><o:p></o:p></span></b></p> <p class="MsoNormal"><b><span style="font-size:20;"><span style=""> </span></span></b><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:20;" lang="HI" >इस बार महिला</span></b><b><span style="font-size:20;"><span style=""> </span></span></b><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:20;" lang="HI" >नहीं</span></b><b><span style="font-size:20;"><o:p></o:p></span></b></p> <p class="MsoNormal"><b><span style="font-size:20;"><span style=""> </span></span></b><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:20;" lang="HI" >एक बालिका तार-तार</span></b><b><span style="font-size:20;"><o:p></o:p></span></b></p> <p class="MsoNormal"><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" >बलात्कार तथा व्यभिचार की घटनाओं में प्रतिदिन इज़ाफा हो</span><span lang="HI" style="font-size:16;"> </span><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" >रहा है और हमारा प्रशासन मुँह ढ़ाँपकर सो</span><span lang="HI" style="font-size:16;"> </span><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" >रहा है। शर्म तो तब आती है</span><span style="font-size:16;">,</span><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" >जब </span><span lang="HI" style="font-size:16;"><span style=""> </span></span><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" >पुलिस</span><span lang="HI" style="font-size:16;"> </span><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" >कर्मी स्वयं इस घटना को अंजाम देते हैं। कौन सुनेगा पुकार जब रक्षक ही भक्षक बन जायेगा </span><span style="font-size:16;">? <o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" >इन सब घटनाओं से जहाँ एक ओर भय और आतंक का वातावरण फैलता है</span><span style="font-size:16;">, </span><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" >वहीं बालिकाओं के हृदय में आत्म सुरक्षा के अनेक सवाल उठने लगते हैं। ऐसे में सबसे अच्छा तो यह है कि प्रत्येक माता-पिता अपनी बालिका को इसके विरूद्ध तैयार करें। मासूम बच्चियों की सुरक्षा अधिक सजगता से करें। उन्हें प्राथमिक स्तर पर ही सुरक्षा की सब जानकारी दें। उनमें आत्मविश्वास जगाएँ तथा जहाँ कोई भी कुत्सित दृष्टि से देखता या दुराचार करता पाया जाए उसे सामाजिक रूप से बहिष्कृत किया जाए।</span><span style="font-size:16;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" >कानून से बचने पर भी समाज से बहिष्कृत होना शर्मनाक होता है। यदि उसकी माँ</span><span style="font-size:16;">, </span><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" >बहन या बेटी ही उसका विरोध करेगी तो अपराधी शर्मसार होगा। शायद अपराध कुछ कम हों। दोषी कोई भी हो- छोटा या बड़ा</span><span style="font-size:16;">, </span><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" >अपना या पराया-सब लोग खुलकर उसका विरोध करें। पाप को संरक्षण देना पाप को बढ़ावा</span><span lang="HI" style="font-size:16;"> </span><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" >देना ही होता है।</span><span style="font-size:16;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" >अपने पुरूष मित्रों से अनुरोध है कि अपने आस-पास इस प्रवृत्ति को रखने वाले का प्रतिकार करें। समाज में बढ़ते अपराध को रोकना सभी की जिम्मेदारी है। अपराधी को भागने या छिपने का मौका ना दें।</span><span style="font-size:16;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" >यदि सब लोग सहयोग करेंगें तो समाज का विकास होगा और नारी में भय के स्थान पर आत्मविश्वास आएगा।</span><span style="font-size:16;"><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal" style=""><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" ><span style=""> </span></span><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:20;" lang="HI" >गूँजे जग में गुंजार यही</span></b><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:20;" >-<o:p></o:p></span></b></p> <p class="MsoNormal" style=""><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:20;" ><span style=""> </span><span lang="HI">गाने वाला नर अगला हो</span><o:p></o:p></span></b></p> <p class="MsoNormal" style=""><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:20;" ><span style=""> </span><span lang="HI">नारी तुम केवल सबला हो ।</span><o:p></o:p></span></b></p> <p class="MsoNormal" style=""><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:20;" ><span style=""> </span><span lang="HI">नारी तुम केवल सबला हो</span></span></b><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" lang="HI" > ।</span><span style=";font-family:Mangal;font-size:16;" ><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-size:16;"><o:p> </o:p></span></p>शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-36118979395697352052008-05-14T04:54:00.000-07:002008-05-14T04:57:46.089-07:00महिला आरक्षण<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiY4gWvpWIbWe_fTpw-6_n5rK5bOcWyLd4tPfMlgRo_8kDnOq5OwBRmHQAuhtCSkYt_nJO9RYcBjjJIpaasliLXIQNsIVx3kp8qkyaQQaCDuT9sIvovcC1inuVvozbR4XhrV_tHbvLHBK4c/s1600-h/luv1.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiY4gWvpWIbWe_fTpw-6_n5rK5bOcWyLd4tPfMlgRo_8kDnOq5OwBRmHQAuhtCSkYt_nJO9RYcBjjJIpaasliLXIQNsIVx3kp8qkyaQQaCDuT9sIvovcC1inuVvozbR4XhrV_tHbvLHBK4c/s200/luv1.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5200201439944576946" border="0" /></a><br /> <p style="font-weight: bold;" class="MsoNormal"><span style="font-size:130%;"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">संसद में महिला आरक्षण का प्रश्न आज प्रत्येक व्यक्ति की चर्चा का विषय है। इसकी आवश्यकता इतनी बढ़ी है कि अन्तर्जाल पर भी चर्चा की जा रही है। चर्चा होना तो अच्छी बात है किन्तु उसका सार्थक ना होना उतना ही दुःख दाई है। </span></span></p> <p style="font-weight: bold;" class="MsoNormal"><span style="font-size:130%;"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">हमारे कुछ पुरूष मित्रों ने इसे नारी जाति पर प्रहार करने का तथा उनपर हँसने का मुद्धा बनाया है। मैं नहीं जानती कि यह कैसी मानसिकता है । महिलाओं के लिए हल्के शब्दों का प्रयोग करके अथवा अश्लील शब्दों की टिप्पणी देकर वे क्या साबित करना चाहते हैं । </span></span></p> <p style="font-weight: bold;" class="MsoNormal"><span style="font-size:130%;"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">सत्य तो यह है कि महिला आरक्षण की चर्चा केवल दिखावटी है। कोई भी दल नहीं चाहता कि जिनका वे सदा से शोषण करते आए हैं</span>, <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">पैरों की जूती समझते आए हैं वे उनके साथ आकर खड़ी हो जाए। इसी कारण २० साल से यह विषय मात्र चर्चा में ही है। ना कोई इसका विरोध करता है और ना खुलकर समर्थन। उसको लाने का सार्थक कदम तो बहुत दूर की बात है। उनको लगता है कि नारी यदि सत्ता में आगई तो उनकी निरंकुशता कुछ कम हो जाएगी</span>, <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">उनकी कर्कशता एवं कठोरता पर अंकुश लग जाएगा तथा महिलाओं पर अत्याचार रोकने पड़ेंगें । </span></span></p> <p style="font-weight: bold;" class="MsoNormal"><span style="font-size:130%;"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">अपने साथी मित्रों को मैं यह बताना चाहती हूँ कि यह पुरूष विरोधी अभियान<span style=""> </span>कदापि नहीं है । इसलिए उटपटाँग शब्दावली का प्रयोग कर अपनी विकृत मानसिकता का परिचय ना दें। पुरूष और स्त्री अगर साथ चलेंगें तो समाज में सुन्दरता ही आएगी कुरुपता नहीं। </span></span></p> <p style="font-weight: bold;" class="MsoNormal"><span style="font-size:130%;"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">मुझे लगता है ३३ ही नही ५० स्थान महिलाओं को मिलने चाहिएँ। आज महिला बौद्धिक</span>, <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">शारीरिक</span>, <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">मानसिक</span>, <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">आत्मिक किसी भी क्षेत्र में कम नहीं फिर उसे आगे आने के अवसर क्यों ना दिए जाएँ</span>? <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">आपत्ति क्यों है </span>?</span></p> <p style="font-weight: bold;" class="MsoNormal"><span style="font-size:130%;"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">निश्चित रहिए -</span>'<span lang="HI" style="font-family:Mangal;">नारी नर की शक्ति है उसकी शत्रु नहीं । आपस में दोषारोपण से सम्बन्धों में तनाव ही आएगा। </span></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-weight: bold;font-size:130%;" ><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">आज समय की माँग है कि नारी को उन्नत्ति के समान अवसर मिलें और खुशी-खुशी उसे उसके अधिकार दे दिए जाएँ।</span></span><span style=""><o:p></o:p></span></p>शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-22818173483624016712008-05-02T08:45:00.000-07:002008-05-02T08:48:17.535-07:00कब टूटेगा अहं….?<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgR13dgO0AF-lNnfjeE06X-mdOSfPoSxhVja41SEcibT8LzLvPPm-yUZO1FkCQF7fzIZBGIc83zJMwtFnLwMHnY2jUPj5x4BBG2xo8pdnlxZpkfMcy0vIase-e-LR3I53JerwOXuo5UsUkS/s1600-h/kalpna1.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgR13dgO0AF-lNnfjeE06X-mdOSfPoSxhVja41SEcibT8LzLvPPm-yUZO1FkCQF7fzIZBGIc83zJMwtFnLwMHnY2jUPj5x4BBG2xo8pdnlxZpkfMcy0vIase-e-LR3I53JerwOXuo5UsUkS/s200/kalpna1.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5195807847954702018" border="0" /></a><br /> <p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। इसी के वशीभूत होकर संसार में बड़े-बड़े पाप और दुष्कृत्य किए जाते हैं। पुरूषों में यह अहं और भी विकृत रूप में सामने आता है। सृष्टि के आरम्भ से ही नारी उसके इस अहं का शिकार होती</span></p> <p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">रही है। </span></p> <p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">रावण के अहंकार का शिकार हुई सीता</span>, <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">दुर्योधन के अहं का द्रोपदी । वर्तमान में भी यह अहं अनवरत रूप से नारी को शिकार बना रहा है। कुछ दिन पहले ही समाचार पत्र में<span style=""> </span>इस अहंकार का विकृत रूप</span><span style="" lang="HI"> </span><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">सामने आया। पति के साथ सहयोग करने वाली<span style=""> </span>एक भावुक नारी का। पति अपनी बुरी हरकतों से कानून की गिरफ्त में आया तो वह पीड़ा से कराह उठी। पति का सुख-दुख में साथ निभाने का वचन याद आया। </span><b>'</b><b><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">मैं तुम्हें कानून के शिकंजे से बचाउँगी</span>' </b><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">का उद्घोष कर उसने अपनी पढाई प्रारम्भ की। अपनी तीव्र इच्छा शक्ति के बल पर एक सफल वकील बनी और सावित्री के समान पति को मुक्त कराया। </span><span style=""><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style=""><o:p> </o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">किन्तु नारी की विडम्बना<span style=""> </span>पत्नी के उपकार को मानने के स्थान पर पति उसकी ख्याति से जल उठा। भला जिस नारी उसने सदा कदमों पर झुका देखा था उसका अहंकार से दप्त मस्तक वो कैसे देखता। उसके अहंकार ने उसे पशु बना दिया और अपनी ही हितैषी</span>, <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">सुख-दुख की साथी संगिनी को क्रूरता से मार डाला।</span></p> <p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">यह घटना नारी की अस्मिता पर एक घिनौना दाग छोड़ती है। किस पर विश्वास करे वह </span>? <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">क्या अपराध था उसका </span>?</p> <p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family:Mangal;">आधुनिकता का दम्भ भरने वाले समाज में आज भी नारी इस अत्याचार की शिकार है। क्या इससे नारी की अपने संस्कारों के प्रति आस्था कम नहीं होती </span>? <span lang="HI" style="font-family:Mangal;">बरबस ही दिल में एक टीस सी उठी-</span><span style=""><o:p></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:14;" lang="HI" >फिर उठी है टीस कोई</span></b><b><span style="font-size:14;"><o:p></o:p></span></b></p> <p class="MsoNormal"><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:14;" lang="HI" >चिर व्यथित मेरे हृदय में</span></b><b><span style="font-size:14;"><o:p></o:p></span></b></p> <p class="MsoNormal"><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:14;" lang="HI" >उठ रहे हैं प्रश्न कितने</span></b><b><span style="font-size:14;"><o:p></o:p></span></b></p> <p class="MsoNormal"><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:14;" lang="HI" >शून्य पर</span></b><b><span style="font-size:14;">-</span></b><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:14;" lang="HI" > नीले</span></b><b><span style="font-size:14;">-</span></b><b><span style=";font-family:Mangal;font-size:14;" lang="HI" > निलय में </span></b><b><span style="font-size:14;"><o:p></o:p></span></b></p> <p class="MsoNormal"><b><span style="font-size:14;"><o:p> </o:p></span></b></p> <p class="MsoNormal"><span style=""><o:p> </o:p></span></p>शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-7632743999951380237.post-34609623126574498292008-05-01T05:14:00.000-07:002008-05-01T05:17:07.423-07:00कुछ दिल की सुनो<p class="MsoNormal"><b><span style="font-family: Mangal;" lang="HI">संसार सारा आदमी की चाल देख हुआ चकित</span><o:p></o:p></b></p> <p class="MsoNormal"><b><span style="font-family: Mangal;" lang="HI">पर झाँक कर देखो दृगों में</span>, </b><b><span style="font-family: Mangal;" lang="HI">हैं सभी प्यासे थकित।</span><o:p></o:p></b></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-family: Mangal;" lang="HI">मस्तिष्क की राह पर चलकर मनुष्य ने</span><span style="" lang="HI"> </span><span style="font-family: Mangal;" lang="HI">वैग्यानिक उपलब्धियाँ तो प्राप्त की हैं किन्तु हृदय की उपेक्षा करने के कारण</span><span style="" lang="HI"> </span><span style="font-family: Mangal;" lang="HI">वह अपने ही दुःखों का कारण बन गया है। सुख और शान्ति से कोसों दूर आगया है। अतः आवश्यकता है हृदय की राह को अपनाने की। कारण</span><span style="">-</span><span style="font-family: Mangal;" lang="HI"> <b>हृदय की बात सुनकर कार्य करने पर हम स्वयं भी सुखी होते हैं और दूसरों</b></span><b><span style="" lang="HI"> </span></b><b><span style="font-family: Mangal;" lang="HI"><span style=""> </span>को</span></b><b><span style=""><span style=""> </span></span></b><b><span style="font-family: Mangal;" lang="HI">भी सुख बाँटते हैं। मस्तिष्क हमें क्रूर</span>, </b><b><span style="font-family: Mangal;" lang="HI">हिंसक और अमानवीय बनाता है और हृदय हमारे देवत्व को जागृत करता है। मस्तिष्क ने हमें भयानक विनाश की राह सुझाई है। अतीत में हुए भयानक युद्धों से लेकर वर्तमान के भयावह युद्ध मस्तिष्क की प्रधानता के ही परिणाम हैं किन्तु हृदय ने सदा चन्दन लेप लगाया है</span></b><b><span style="">, </span></b><b><span style="font-family: Mangal;" lang="HI">परायों को भी अपनाया है।</span></b><b><span style=""><o:p></o:p></span></b></p> <p class="MsoNormal"><b><span style="font-family: Mangal;" lang="HI">अतः हृदय की पुकार सुनने की महती आवश्यकता है।</span></b><b><span style=""><o:p></o:p></span></b></p>शोभाhttp://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com4