माँ तुम…… बहुत याद आ रही हो एक बात बताऊँ……… आजकल….. तुम मुझमें समाती जा रही हो
आइने में अक्सर तुम्हारा अक्स उभर आता है और कानों में अतीत की हर एक बात दोहराता है
तुम मुझमें हो या मैं तुममें समझ नहीं पाती हूँ पर स्वयं को आज तुम्हारे स्थान पर खड़ा पाती हूँ
तुम्हारी जिस-जिस बात पर घन्टों हँसा करती थी कभी नाराज़ होती थी झगड़ा भी किया करती थी
वही सब…… अब स्वयं करने लगी हूँ अन्तर केवल इतना है कि तब वक्ता थी और आज श्रोता बन गई हूँ
हर पल हमारी राह देखती तुम्हारी आँखें …….. आज मेरी आँखों मे बदल गई हैं तुम्हारे दर्द को आज समझ पाती हूँ जब तुम्हारी ही तरह स्वयं को उपेक्षित सा पाती हूँ
मन करता है मेरा… फिर से अतीत को लौटाऊँ तुम्हारे पास आकर तुमको खूब लाड़ लड़ाऊँ आज तुम बेटी और मैं माँ बन जाऊँ
तुम्हारी हर पीड़ा, हर टीस पर मरहम मैं बन जाउँ तुम कितनी अच्छी हो कितनी प्यारी हो ये सारी दुनिया को बताऊँ
पर जानती हूँ माँ ! वो वक्त कभी नहीं आएगा इतिहास स्वयं को यूँ ही दोहराएगा
तुमने किसी को दोषी नहीं ठहराया मैं भी नहीं ठहराऊँगी किसी पर अधिकार नहीं जताया मैं भी नहीं जताऊँगी तभी तो तुम्हारे ऋण से उऋण हो पाऊँगी
7 comments:
इस सुंदर जानकारी के लिये ...
धन्यवाद
aabhar...
is jankari ke liye....
शुक्रिया
dhanywaad
baakee jaankaaree?
शोभाजी मेरी भावनाओ को समझने के लिए आपका धन्यवाद
नये साल की मुबारकबाद कुबूल फरमाऍं।
लिंक देने का शुक्रिया।
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