Wednesday 22 October 2008

आओ हम सब दीप जलाएँ


आओ हम सब दीप जलाएँ

दीपों की इक लड़ी

बनाएँघर के अँधियारे के संग-

संगमन का भी अन्धकार

हम सब दीप जलाएँ


प्रेम प्यार से घर-घर जाएँ

दुखियों को भी गले लगाएँ

उनको भी खुशियाँ दे आएँ

आँखों में सपने दे आएँ

आओ हम सब दीप जलाएँ


इस जग में है बहुत -अँधेरा

क्रोध-वैर ने सबको घेरा

करते हैं सब तेरा-मेरा

एक दीप उनको दे आएँ

तेरा-मेरा भाव भुलाएँ

आओ हम सब दीप जलाएँ


दीप उनको दे आएँ तेरा-मेरा भाव भुलाएँआओ हम सब दीप जलाएँ