Monday 22 September 2008

जीवन

जीवन
जीवन क्या है ?
आशाऒं- निराशाऒं का
क्रीड़ास्थल ।

एक आती है,
दूसरी जाती है ।
एक सपने जगाती है ।
कोमल भावनाऒं की
कलियाँ खिला जाती है ।

मन्द- मन्द बयार बन
उन्हें सहलाती है ।
मन मयूर खुशी से
नाचने लगता है ।

किन्तु तभी---
दूसरी लहर आती है ।
मौसम बदलता है ।
बयार की गति बढ़ जाती है ।

तूफान के झोंके आते हैं ।
हर कली को गिराते हैं ।
बहारों का मौसम
पतझड़ में बदल जाता है ।

सुख- दुःख का जीवन से
बस इतना ही नाता है ।

Saturday 13 September 2008

हिन्दी-दिवस

हिन्दी-दिवस की आप सभी को बधाई। १४ सितम्बर १९४९ को संविधान में हिन्दी को राष्ट्र भाषा स्वीकार किया गया था। एक लम्बा अन्तराल बीत गया है किन्तु आज तक हम हिन्दी को वह स्थान नहीं दिला पाए जिसकी वह अधिकारिणी है। हम उसका सम्मान करते हैं किन्तु उपयोग में अंग्रेजी ही लाते हैं। अपने बच्चों को अंग्रेजी बोलने के संस्कार देते हैं, अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाते हैं और गर्व से कहते हैं हिन्दी नहीं आती। क्या सुन्दर ढंग है हिन्दी के सम्मान करने का ।
वर्तमान में हम अपनी भाषा और अपनी संस्कृति दोनो से ही दूर होते जारहे हैं। एक विदेषी भाषा सीखना बुरा नहीं किन्तु अपनी पहचान खो बैठना बुरा है। अपनी भाषा से दूर होने के कारण हम अपनी संस्कृति से भी दूर हो रहे हैं। बल्कि यों कहें कि अपनी पहचान भी खो रहे हैं। हमारी दशा उस मूर्ख जैसी है जिसके पास पूर्वजों की बहुमूल्य विरासत है किन्तु वह उसका उपयोग नहीं कर पाता और भिखारी बना रहता है।
संसार के जितने भी राष्ट्र हैं सब अपनी भाषा को प्राथमिकता देते हैं और हम अपनी भाषा बोलने और सीखने में शर्म का अनुभव करते हैं। इसका भयानक परिणाम मैं नई पीढ़ी में देख रही हूँ। जो ना हिन्दी ठीक से पढ़ सकता है ना लिख सकता। और अंग्रेजी में पारंगत है। दोषी नई पीढ़ी नहीं दोषी हम लोग हैं। हमने उनको अपनी भाषा के संस्कार ही कहाँ दिए। हमने उसे अंग्रेजी बोलने के लिए ही प्रेरित किया। उसे कभी हिन्दी की विशेषताएँ नहीं बताई।
हमारी हिन्दी भाषा संसार की सर्वोत्तम भाषा है। इसकी वैग्यानिकता इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। जैसे बोली जाती है वैसे ही लिखी जाती है। तर्क संगत है। सुमधुर और सरल है। भूमावृति के कारण नित्य नवीन शब्दों को जन्म देने वाली है। एक-एक शब्द के कितने ही पर्याय वाची हैं। हर शब्द का सटीक प्रयोग होता है। अलग-अलग संदर्भों में एक ही शब्द नहीं , अलग-अलग शब्द हैं।
समन्वय की प्रवृति के कारण दूसरी भाषाओं के शब्दों को जल्दी ही अपने में समा लेती है। माँ के समान बड़े प्यार से सबको अपने आँचल में समा लेती है। यही कारण हैकि दूसरी भाषाओं के शब्द यहाँ आकर इसीके हो जाते हैं। फिर भी हम इसका लाभ नहीं उठा पा रहे। यह हमारा दुर्भाग्य ही तो है।
आज विश्व के अनेक देश हिन्दी के महत्व को समझ रहे हैं। इसके शिक्षण की व्यवस्था कर रहे हैं, गोष्ठियाँ कर रहे हैं और हम इसकी उपेक्षा कर रहे हैं।
हिन्दी-दिवस के अवसर पर मैं अपने देश वासियों को यही संदेश देना चाहूँगी कि यदि अपने स्वाभिमान और अपनी अस्मिता को बचा कर रखना है तो अपनी भाषा को महत्व देना सीखो। इसे ग्यान-विग्यान का वाहक बनाओ तथा इसमें संचित कोष का लाभ उठाओ। अपनी भाषा सीखो यही तुमको उन्नति दिलाएगी
यदि अपनी माँ भिखारिन रही तो पराई भी कुछ नहीं दे पाएगी।
जय भारत।