Sunday 25 January 2009

लोकतंत्र

लोकतंत्र
एक असफल शासन प्रणाली
धूर्तों की क्रीड़ा
मासूमों की पीड़ा
पराजित जीवन मूल्य
विजित नैतिकता
दानवों का अट्टाहस
देवों का रूदन
नेता सूत्रधार
जनता कठपुतली
नित्य नवीन योजनाएँ
बहुत सी वर्जनाएँ
संसद में शोर
आतंक का जोर
आरोप-प्रत्यारोप
निष्कर्ष-----?
शून्य --
टूटते विश्वास
खंडित प्रतिमाएँ
धार्मिक संकीर्णताएँ
चहुँ दिशि आहें
ऊफ़! ये लोकतंत्र

16 comments:

प्रदीप मानोरिया said...

कसा हुआ व्यंग धारदार तीखा ... वाह वाह
गणतंत्र दिवस पर आपको शुभकामनाएं .. इस देश का लोकतंत्र लोभ तंत्र से उबर कर वास्तविक लोकतंत्र हो जाएऐसी प्रभु से कामना है

daanish said...

jb aapne kahaa.."uff! ye gantantra"
apne aap hi sb kuchh aa gya...
bahot hi dhaardaar, steek, aur sachcha chitran kiya hai aapne..
kavita ka kalaa paksh bhi utna hi sjeev hai !!
badhaaee !!
---MUFLIS---

योगेन्द्र मौदगिल said...

wahwa... Shobha ji wah...
baat-baat me bahut badi baat kah di aapne.... wah....

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

मैं आपकी इस कविता के धारदार कथ्य से बिल्कुल सहमत हूँ.
बहुत ही नपे-तुले शब्दों में आपने अपनी चिंता और चिंतन को व्यक्त किया है.
बहुत बधाई .


द्विजेन्द्र "द्विज
"


www.dwijendradwij.blogspot.com

राज भाटिय़ा said...

एक सच आपने अपनी कविता है कह दिया.बहुत सुंदर व्यंग.
गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

ilesh said...

बहुत ही मार्मिक और सटीक चित्रन...

अनिल कान्त said...

bahut achchha likha hai ...

Anonymous said...

in sabke baavjood
swatantrataa
maulik adhikaar
aur
any visheshtaaye hai hi
tanashaahi
yaa koi any shaasan paddhtiyon se achchhi bhi hai.....

magar aapki kavitaa ki samvedanaa jabardast hai

Anil said...

bahut hi badiya dhang se tarashe hain shabd aapne........dhanyavad...rochak rachana k liye

Dev said...

बहुत अच्छा और बेहतरीन लिखा है
बधाई स्वीकारें

Asha Joglekar said...

लोकतंत्र कहाँ है वह तो है सिर्फ कागज पर यह तो असल में नेता तंत्र और बाबू तंत्र है ।

निर्झर'नीर said...

loktantra ke bigde hue roop ka kitna sarthak chitran kiya hai chand shabdo mein..bejod vyang

daad hazir hai

रंजना said...

वार्तमान राजनीतिक परिदृश्य का सटीक आकलन अति सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया है आपने... सशक्त सुन्दर और सार्थक रचना हेतु साधुवाद...

gazalkbahane said...

न लोक तन्त्र खराब
न खराब राज तन्त्र
खराबियों की जड़ है
मनुष्य का लोभतन्त्र

कविता धारदार है
लोक व लोक तन्त्र
सचमुच बीमार है
सब पर बाजार की मार है
श्यामसखा‘श्याम’

जयंत - समर शेष said...

अति उत्तम तरीके से आपने तीखी टिप्पड़ी की है ।
वाह वाह।
~जयंत

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

आप ने वर्तमान के लोकतंत्र पर काफी अच्छा कटाक्ष किया है........
साथ ही मै श्याम जी मत से सहमत हूँ की खराबियों की जड़ मनुष्य का लोभतंत्र है...