हम सब
हिन्दी दिवस तो मना रहे हैं
जरा सोचें
किस बात पर इतरा रहें हैं ?
हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा तो है
हिन्दी सरल-सरस भी है
वैग्यानिक और
तर्क संगत भी है ।
फिर भी--
अपने ही देश में
अपने ही लोगों के द्वारा
उपेक्षित और त्यक्त है ------
---------------जरा सोचकर देखिए
हम में से कितने लोग
हिन्दी को अपनी मानते हैं ?
कितने लोग सही हिन्दी जानते हैं ?
अधिकतर तो--
विदेशी भाषा का ही
लोहा मानते है ।
अपनी भाषा को
उन्नतिका मूल मानते हैं ?
कितने लोग
हिन्दी कोपहचानते हैं ?-----------------
--------भाषा तो कोई भी बुरी नहीं
किन्तु हम
अपनी भाषा से
परहेज़ क्यों मानते हैं ?
अपने ही देश में
अपनी भाषा की
इतनीउपेक्षा
क्यों हो रही है
हमारी अस्मिता
कहाँ सो रही है ?
व्यवसायिकता और लालच की
हद हो रही है ।-----------------
--इस देश में
कोई फ्रैन्च सीखता है
कोई जापानी
किन्तु हिन्दी भाषा
बिल्कुल अनजानी
विदेशी भाषाएँ
सम्मान पा रही हैं
औरअपनी भाषा
ठुकराई जारही है ।
मेरे भारत के सपूतों
ज़रा तो चेतो ।
अपनी भाषा की ओर से
यूँ आँखें ना मीचो ।
अँग्रेजी तुम्हारे ज़रूर काम आएगी ।
किन्तु
अपनी भाषा तो
ममता लुटाएगी ।
इसमें अक्षय कोष है
प्यार से उठाओ
इसकी ग्यान राशि से
जीवन महकाओ ।
आज यदि कुछ भावना है
तो राष्ट्र भाषा को अपनाओ ।
Tuesday, 15 September 2009
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4 comments:
बेहतरीन रचना हिन्दी दिवस पर.
बहुत सुंदर रचना ..हिन्दी के प्रति आपकी भावना बहुत अच्छी लगी
फिर भी--
अपने ही देश में
अपने ही लोगों के द्वारा
उपेक्षित और त्यक्त है ------
.... kitna sahi hai !
behad sunder kavita.
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