Thursday 1 May 2008

कुछ दिल की सुनो

संसार सारा आदमी की चाल देख हुआ चकित

पर झाँक कर देखो दृगों में, हैं सभी प्यासे थकित।

मस्तिष्क की राह पर चलकर मनुष्य ने वैग्यानिक उपलब्धियाँ तो प्राप्त की हैं किन्तु हृदय की उपेक्षा करने के कारण वह अपने ही दुःखों का कारण बन गया है। सुख और शान्ति से कोसों दूर आगया है। अतः आवश्यकता है हृदय की राह को अपनाने की। कारण- हृदय की बात सुनकर कार्य करने पर हम स्वयं भी सुखी होते हैं और दूसरों को भी सुख बाँटते हैं। मस्तिष्क हमें क्रूर, हिंसक और अमानवीय बनाता है और हृदय हमारे देवत्व को जागृत करता है। मस्तिष्क ने हमें भयानक विनाश की राह सुझाई है। अतीत में हुए भयानक युद्धों से लेकर वर्तमान के भयावह युद्ध मस्तिष्क की प्रधानता के ही परिणाम हैं किन्तु हृदय ने सदा चन्दन लेप लगाया है, परायों को भी अपनाया है।

अतः हृदय की पुकार सुनने की महती आवश्यकता है।

4 comments:

आशीष "अंशुमाली" said...

स्‍वागतम्।
मगर दिल की पुकार सुनायी कैसे पड़े। कैसी होती है यह पुकार। चन्‍दनलेप तो पसन्‍द आया।

राज भाटिय़ा said...

शोभा जी सच जॊ आत्मा की आवाज सुन कर चलता हे कभी दुखी नही होता,इस बात से आप से सहमत हे.

Unknown said...

कितनी सुंदर बात कही है आपने - "हृदय की पुकार सुनने की महती आवश्यकता है". इस आवाज को नकारने का एक दुखद परिणाम यह हुआ है कि प्रेम कहीं खो गया है. प्रेम को अपने जीवन में वापस लाकर ही मनुष्य को शान्ति मिलेगी. प्रेम करो सब से, नफरत न करो किसी से.

प्रदीप मानोरिया said...

संसार सारा आदमी की चाल देख हुआ चकित

पर झाँक कर देखो दृगों में, हैं सभी प्यासे थकित।
आप जितनी सुंदर कविता लिखती हैं उतना ही सुंदर आलेख सच ही है प्रतिभा प्रतिभा होती है बधाई

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