Friday 2 May 2008

कब टूटेगा अहं….?


अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। इसी के वशीभूत होकर संसार में बड़े-बड़े पाप और दुष्कृत्य किए जाते हैं। पुरूषों में यह अहं और भी विकृत रूप में सामने आता है। सृष्टि के आरम्भ से ही नारी उसके इस अहं का शिकार होती

रही है।

रावण के अहंकार का शिकार हुई सीता, दुर्योधन के अहं का द्रोपदी । वर्तमान में भी यह अहं अनवरत रूप से नारी को शिकार बना रहा है। कुछ दिन पहले ही समाचार पत्र में इस अहंकार का विकृत रूप सामने आया। पति के साथ सहयोग करने वाली एक भावुक नारी का। पति अपनी बुरी हरकतों से कानून की गिरफ्त में आया तो वह पीड़ा से कराह उठी। पति का सुख-दुख में साथ निभाने का वचन याद आया। 'मैं तुम्हें कानून के शिकंजे से बचाउँगी' का उद्घोष कर उसने अपनी पढाई प्रारम्भ की। अपनी तीव्र इच्छा शक्ति के बल पर एक सफल वकील बनी और सावित्री के समान पति को मुक्त कराया।

किन्तु नारी की विडम्बना पत्नी के उपकार को मानने के स्थान पर पति उसकी ख्याति से जल उठा। भला जिस नारी उसने सदा कदमों पर झुका देखा था उसका अहंकार से दप्त मस्तक वो कैसे देखता। उसके अहंकार ने उसे पशु बना दिया और अपनी ही हितैषी, सुख-दुख की साथी संगिनी को क्रूरता से मार डाला।

यह घटना नारी की अस्मिता पर एक घिनौना दाग छोड़ती है। किस पर विश्वास करे वह ? क्या अपराध था उसका ?

आधुनिकता का दम्भ भरने वाले समाज में आज भी नारी इस अत्याचार की शिकार है। क्या इससे नारी की अपने संस्कारों के प्रति आस्था कम नहीं होती ? बरबस ही दिल में एक टीस सी उठी-

फिर उठी है टीस कोई

चिर व्यथित मेरे हृदय में

उठ रहे हैं प्रश्न कितने

शून्य पर- नीले- निलय में

12 comments:

मेनका said...

फिर उठी है टीस कोई

चिर व्यथित मेरे हृदय में

उठ रहे हैं प्रश्न कितने

शून्य पर- नीले- निलय में
baar baar mere man me gunjne lage hain ye shabd.

राज भाटिय़ा said...

रावण के अहंकार का शिकार हुई सीता, दुर्योधन के अहं का द्रोपदी
शोभा जी सीता के लिये लडा भी तो मर्द ही था.द्रोपदी की बेइज्जती का बदला भी तो मर्दो ने लिया था, फ़िर इन दोनो केसो मे गल्ती किस की थी, सीता को कया पता नही था? सोने का हिरण नही होता, ओर जो राज पाठ त्याग कर आया हो उसे मरे हुये सोने के हिरण से कया मिलता ? क्या द्रोपदी को क्या जरुर थी दुर्योधन को अन्धे का बेटा कहने की,पंगा ओरते ही लेती हे भुगतना मर्दो को पडता हे,फ़िर भी आप कहती हे **कब टूटेगा अंह..
अगर मर्द भी ओरतो की तरह से हो तो भी उसे अलग नाम से सम्बोधन किया जाता हे, सभी मर्द एक से नही होते, जो बात आप ने लिखी हे वो सच मे गलत हे, ओर ऎसे मर्द क्या इन्सांन कहलाने के लायक भी नही,मुझे भी अजीब लगा यह खबर पढ कर, धन्यवाद

neelima garg said...

interesting post...

डॉ .अनुराग said...

आहंकर मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है ओर उसकी बुद्धि का भी.......सही बात है....

आशीष कुमार 'अंशु' said...

बहुत बढ़िया

Surakh said...

आपकी लेखन शैली बहुत अच्छी है।

Ranikhet said...

Raj Bhatiya ne sahi kaha rahe hai

रेवा स्मृति (Rewa) said...

@राज भाटिय़ा जी,

"सीता को कया पता नही था? सोने का हिरण नही होता, ओर जो राज पाठ त्याग कर आया हो उसे मरे हुये सोने के हिरण से कया मिलता ?"


Maryada purushottam Ramji ko pata nahi tha jo sita mata ke kahne per hiran ke peeche dourne gaye the? :P
Ab boliye galti kinki thee? Aisa kijiye galti na dhoondhkar solution nikaliye:-)

rgds.
rewa
www.rewa.wordpress.com

ishq sultanpuri said...

solid and special prose.

Satish Saxena said...

बहुत सुंदर शोभा जी !

प्रदीप मानोरिया said...

फिर उठी है टीस कोई
चिर व्यथित मेरे हृदय में
उठ रहे हैं प्रश्न कितने
शून्य पर- नीले- निलय में
सुंदर पंक्तियाँ बधाई
कृपया पधारे manoria.blogspot.com or knjiswami.blog.co.in

प्रदीप मानोरिया said...

फिर उठी है टीस कोई

चिर व्यथित मेरे हृदय में

उठ रहे हैं प्रश्न कितने

शून्य पर- नीले- निलय में

सम्मानीय शोभा जी सुंदर पंक्तियों से सजी सार्थक रचना लाजबाब चिंतन बधाई मेने आपका ब्लॉग मेरी सूची में शामिल कर लिया है आप चाहे तो मेरा ब्लॉग आप भी अपनी सूची में शामिल कर सकते हैं फिलहाल आपका मेरी नई पोस्ट "१२३ परमाणु करार " पढ़ने सादर आमंत्रित है