Saturday 5 July 2008

स्वाभिमानी इला

प्रिय पाठकों
आज मैं आप सबको एक सशक्त और आत्मविश्वास से पूर्ण नारी के बारे में बताऊँगी। इस बहादुर नारी का नाम था इला। इला का विवाह एक बहुत ही घमंडी तथा क्रूर इन्सान से हुआ था। विवाह के कुछ ही दिनों बाद इला को पति द्वारा बिना कारण प्रताड़ना मिलने लगी। उसका कसूर केवल इतना ही था कि वह एक सीधी-सादी भारतीय नारी थी।वह अधिक पढ़ी-लिखी भी नहीं थी इसीलिए बहुत दिनों तक पति के अत्याचार सहती रही। उसके माता-पिता की आर्थिक स्थिति भी खराब ही थी। वह अपनी दशा से उनको और दुखी नहीं करना चाहती थी।
किन्तु एकदिन उसके स्वाभिमान पर गहरी चोट लगी और उसने विरोध कर दिया। परिणाम स्वरूप उसे धक्के मार-मार कर बाहर निकाल दिया गया। पति के घर से पिता के घर भी वह नहीं जा सकती थी। वह रातभर घर के बाहर बैठकर रोती रही। उसके रोने की आवाज़ सुनकर पास ही रहने वाली एक सहृदय महिला ने उसको अपने स्कूल में नौकरी दिलवा दी। उनका सहारा पाकर उसे बड़ा बल मिला।
चुपचाप वह काम करती रही और अपनी पढ़ाई भी करती रही। अपनी मेहनत से उसने एम ए की परीक्षा उत्तीर्ण की।
प्रधानाचार्या ने जब उसका परीक्षा परिणाम देखा तो उसे एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी दिला दी। अब तो इला का उत्साह और बढ़ गया। वह पढ़ाने के साथ-साथ बालिकाओं में आत्मविश्वास भी जगाने लगी।
उसके अच्छे स्वभाव से आस-पास के लोग भी खुश थे। वह सभी के लिए आदर्श बन गई। उसने औरों को भी यही शिक्षा दी कि अन्याय के सामने कभी भी मत झुको। जीवन के अन्तिम दिनों में भी इला मुस्कुराती रही। अपना दर्द कभी भी किसी को नहीं दिया ,बस प्यार ही बाँटा।
आज इला नहीं है किन्तु उसका दिया हुआ विश्वास उसकी प्रत्येक छात्रा में है। काश दुनिया की हर महिला में ऐसा स्वाभिमान आजाए जिससे कोई उसपर अत्याचार करने की बात सोच भी ना सके। इला की कथा हम सब के लिए प्रेरणा है। ऐसी ही नारियों को देख प्रसाद जी ने लिखा था-
नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग- पग- तल में
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।

3 comments:

admin said...

यह प्रेरक गाथा तमाम लोगों की प्रेरणा का श्रोत बने, यही मेरी कामना है।

मेनका said...

bahut hi achhi rachna hai,,,aap isi prakaar likhna jaari rakhe.

प्रदीप मानोरिया said...

bahut sundar aalekh .. mere blog par aapkaa niymit aagman mera sambal hai