Monday 14 July 2008

अबला नहीं सबला बन

अबला नहीं सबला बन

कल ही मैं जून माह की कादम्बिनी पढ़ रही थी। उसमें तसलीमा जी का एक लेख बहुत प्रभावी लगा। सारंश कुछ इस प्रकार था- " दूरदर्शन के एल कार्यक्रम में महिलाओं से पूछा जा रहा था कि वे किस प्रकार के पुरूषों को ज्यादा पसन्द करती हैं। यह देखकर बड़ी हैरानी हुई कि अधिकतर तारिकाएँ आक्रामक पुरूष को पसन्द करती हैं। आक्रामक माने माचो मैन। कितने आश्चर्य की बात है कि पुरूष द्वारा पीड़ित,शोषित नारी पुनः आक्रामक पुरूष चाहती है "
तसलीमा जी की बात से मैं भी सहमत हूँ। पुरूष तो सदा से आक्रामक ही रहा है। फिर ऐसी कामना क्यों ?
मुझे ऐसा लगता है कि अधिकतर स्त्रियाँ स्वभाव से ही कमजोर होती हैं। इन्हें बचपन से ही कमजोर बनाया जाता है। हमेशा पिता या भाई की सुरक्षा में रहने के कारण असुरक्षा की भावना उसके दिल में बैठ गई है। एसी भावना से प्रेरित होकर वह कभी भाई की दीर्घ आयु की कामना के लिए व्रत उपवास रखती आई है तो कभी पति की लम्बी उम्र के लिए । क्या कभी किसी भाई या पति ने इनके मंगल की कामना हेतु कोई उपवास किया है ?
प्रेम और समर्पण नारी का स्वभाव है। किन्तु अपनी कमजोरी के प्रति स्वीकार्य की भावना निन्दनीय है। उसकी सोच ही उसे कमजोर बनाती है। इतिहास साक्षी है कि जब भी नारी ने अपने को कमजोर समझा उसपर अत्याचार हुआ और जब भी उसने अपने आत्मबल को जगाया, अन्यायी काँप गया। स्त्री को यदि स्वाभिमान से जीना है तो सबसे पहले अपने भीतर के डर को भगाना होगा, अपनी शक्ति को पहचानना होगा । उसके भीतर छिपा भय ही उसके शोषण का कारण है।
अतः वर्तमान में आवश्यकता है कि हर नारी पर जीवी बनना छोड़ दे। परिवार में प्यार और मधुर सम्बन्ध अवश्य होने चाहिए किन्तु कमजोरी से ऊपर उठें और अपने बच्चों को भी सशक्त बनाएँ। आत्मविश्वास को अफनी पहचान बनाएँ क्योंकि -
जब भी मैने सहायता के लिए किसी को पुकारा, स्वयं को और भी कमजोर बनाया
जब भी आत्म विश्वास को साथी बनाया, रक्त में शक्ति का संचार सा पाया।
अतः मै यही कहूँगी कि- सशक्त बनें और निर्भीक रहें। इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं जो तुम नहीं कर सकती।
यही युग की पुकार है और यही जीत का मूल मंत्र।

8 comments:

राज भाटिय़ा said...

शोभा जी आप के लेख की लिखावट बहुत छोटे अक्षरो मे हे पढने मे काफ़ी मुश्किल होती हे मेहरबानी करके थोडे शबद बडे रखे, धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया said...

" स्त्रियाँ स्वभाव से ही कमजोर होती हैं। .... हमेशा पिता या भाई की सुरक्षा में रहने के कारण असुरक्षा की भावना उसके दिल में बैठ गई है। ... उसके भीतर छिपा भय ही उसके शोषण का कारण है। इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं जो तुम नहीं कर सकती। यही युग की पुकार है और यही जीत का मूल मंत्र।"
बड़ा सशक्त लेखन है आपका ! आपने सवाल उठाये ! आपके पास ही जबाव भी हैं !
आप जैसी सशक्त विचारों वाली नारी जब अगुआई करेगी तो नारी अपनी ये कमजोरी
भी दूर कर लेगी ! पर लगातार जद्दोजहद करते रहना पड़ेगी ! अभी भी हालत चंद महिलाओं
को छोड़कर मुझे तो जस की तस ही दिखाई दे रहे हैं !
धन्यवाद !

योगेन्द्र मौदगिल said...

सशक्त बात की आपने, पर महिलायें स्वयं आक्रामक भाव को पसन्द करती हों तब सोल्यूशन क्या ?

राज भाटिय़ा said...

एक मां ही अपने बच्चो को अच्छे संस्कार दे सकती हे, पिता तो धन कमाने के लिये जाता हे,ओर जब मां बच्चो को अच्छे संस्कार दे कर मजबुत बना रही हे तो कमजोर कहा से हुई, फ़िर मां तो शक्ति का रुप हे मां ही स्त्रि हे, फ़िर कमजोर कहा हे एक स्त्रि ,यह तो वह खुद समझती हे, लेकिन कमजोर नही हे, हादसे तो सब के साथ होते हे,स्त्रि कोमल हे यही माहानता हे, वरना मर्द ओर स्त्रि मे फ़र्क ही क्या रह जाता हे,
शोभा जी धन्यवाद ,आप के सुन्दर लेख के लिये

Doobe ji said...

is sansar mein anek tarha ke log hain ache PURUSH kharab NAARI achi NAARI kharab PURUSH . APKA ARTICLE ACHA LAGA

* મારી રચના * said...

"अबला नहीं सबला बन"

^ heading hi kafi hai sahi raah dikhane ke liye... shukriya shobhaji...

Satish Saxena said...

सारा जीवन किया समर्पित
परमार्थ में नारी ही ने
विधि ने ऐसा धीरज लिखा
केवल भाग्य तुम्हारे में ही
उठो चुनौती लेकर बेटी,शक्तिमयी सी तुम्ही दिखोगी!

UjjawalTrivedi said...

उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद!!!