बाहर से टिप-टाप
भीतर से थकी-हारी
।सभ्य, सुशिक्षित, सुकुमारी
फिर भी उपेक्षा की मारी
।समझती है जीवन में
बहुत कुछ पाया है
नहीं जानती-ये सब
छल है, माया है।
घर और बाहर
दोनों मेंजूझती रहती है।
अपनी वेदना मगर
किसी से नहीं कहती है
।संघर्षों के चक्रव्यूह
जाने कहाँ से चले आते हैं ?
विश्वासों के सम्बल
हर बार टूट जाते हैं
किन्तु उसकी जीवन शक्ति
फिर उसे जिला जाती है
।संघर्षों के चक्रव्यूह से
सुरक्षित आ जाती है ।
नारी का जीवन
कल भी वही था-
आज भी वही है ।
अंतर केवल बाहरी है ।
किन्तुचुनौतियाँ
हमेशा सेउसने स्वीकारी है
।आज भी वह
माँ-बेटी तथा
पत्नी का कर्तव्य निभा रही है ।
बदले में समाज से
क्या पा रही है ?
गिद्ध दृष्टि
आज भी उसेभेदती है ।
वासना आज भी रौंदती है ।
आज भी उसे कुचला जाता है ।
घर, समाज व परिवार मेंउसका
देने का नाता है ।
आज भी आखों में आँसू
और दिल में पीड़ा है ।
आज भी नारी-श्रद्धा और इड़ा है ।
अंतर केवल इतना है
कल वह घर की शोभा थी
आज वह दुनिया को महका रही है ।
किन्तु आधुनिकता के युग में
आज भी ठगी जा रही है ।
आज भी ठगी जा रही है
19 comments:
शोभा जी आप की कविता बहुत ही सटीक लगी, एक एक शव्द सच मै डुबा हुआ है.
धन्यवाद
आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीगी भीगी बधाई।
बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है
आधुनिक नारी की मर्मस्पर्शी व्यथा
सुन्दर अभिव्यक्ति
निःशब्द कर दिया आपने......अद्भुद !! पूर्णतः सटीक !! यथार्थ का सही चित्रण किया है आपने...सशक्त सुन्दर और सार्थक रचना हेतु साधुवाद...
कहने को हम दुनिया आधी
फ़िर भी हैं मर्दों की बांदी
जन्म दिया आदम को हमने
जनम-जनम की हम अपराधी
बात बड़ी है सीधी-सादी
औरत होना है बरबादी
श्याम सखा ‘श्याम’
नारी के तमाम रूपों को आपने बहुत ही सलीके से बयां कर दिया है।
waji naari
kitni thi dukhiyaari
aadhunik ho kar bhi thaki haari
abalaa bechaari
jindagi se haari
aur akeli purushon par rahti bhaari
There is nothing more I can say but I agree with you whole heartily.
This is the bitter truth, in fact in the name of "aadhunikataa" "waasanaa" has started eating women in many forms.
If you are not 'exposing' you are not modern!! That is another way to exploit women, which most unfortunately most of our 'modern' women are not able to see.
Thanks for your excellent poetry.
~Jayant
वाह अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकार करें
चित्रण आज की नारी का । शोभा जी आप की कविता बहुत ही सशक्त है ।
Only can say, very true!!
Good poetry.
Rgds
गहरी भावाभिव्यक्ति हार्दिक धन्यबाद
विगत एक माह से ब्लॉग जगत से अपनी अनुपस्तिथि के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
शोभा जी,
क्षमा प्रार्थी हूँ कि आपकी टिप्पणी पढी और सुधि ली. बहुत चाहता था कि आपको धन्यवाद देना, परंतु कोई मजबूरी ना होते हुये भी, छूट गया था.
नारी के जीवनचक्र में उसे किस-किस बहाने से छला जाता है बड़ी ही खूबी के साथ नक्श उकेरा है. भाग्य / नियति के नाम पर उसे सिर्फ हांका जाता है, गोया कोई भेड़ हुई और चरवाहे की मर्जी, किधर लेकर जाना है.
विचारों से ओत-प्रोत रचना के लिये बधाईयाँ, पुनश्र्चः,
मुकेश कुमार तिवारी
आधुनिक नारी का सम्पूर्ण चित्र आपने उतार कर दख दिया।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
KYA NARI KE PAS SHEEL HOTI HE PURUSH KE PAS NAHI?meri ray niche& APPKI RAY >INTEZAR RAHEGA>>>>>>>>>>>
sheel to istri-purush dono ki hoti he magar hamne yani ki samaj ne kabhi samjha hi nahi,thik buniyad ki tarah jamin me dava hota koi iski taraf dekhta bhi nahi .najar aata he to bas mahlen jo niche ki foundation pe tiki hoti he.hamare parivar ne purush ko maan -samman dene ki jaruri nahi samjha.ladko ka apmaan mahaj ek jaadu he jo turant khatam ho jata he .kisi mahila ya ladki ne kabhi ladko ya purush ko uchit samman nahi dete paya.vo to bas yahi samajhti he ladke ek aisa patthar he jise baar-baar uchhalo use chot nahi lagti aur lagti he to dard nahi hota aur hota he to ho iski parvah koi naari kyon kre kyonki emotional atyachaar-balatkar karna jaise ladki ka param kartav heaur janmsidhdh adhikaar bhi
यह बेचारी अबला नारी
सबके लिए कर कर के हारी
Very touching truth..
shabdon ki kanjoosi karte hue itne vistrit aayam ko kaise sanjoya?
behad achchhi rachana.
Naaree ka sajeev chitran.
{ Treasurer-T & S }
सार्थक रचना!
Sundar kavita.
Is Blog ko sakreey rakkhhen.
Think Scientific Act Scientific
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